गद्य कवियों का निकष है, निबंध हिंदी गद्य का निकष है।
आधुनिक हिंदी का निर्माण भारतेंदु के समय निबंध से ही शुरू हुआ, दूसरे संपूर्ण भारतीय चिंतन इस माध्यम से ही मुखरित हुआ। कवि-कर्म की कसौटी आज भी निबंध है। कवि को संवेदन सघनता और छंद का सहारा होता है पर, इन दोनों के प्रलोभनों को नियंत्रित करके आंतरिक लयबद्धता की ओर अपने को पूर्ण लय में संपृक्त कराते हुए भी, बीच-बीच में अपने को अलग कर देने की अपेक्षा निबंधकार से की जाती है।
निबंध एक ऐसी विधा है कि इसमें प्राथमिक कक्षा के निबंधों से लेकर शोध-निबंध भी आते हैं, विचार प्रधान निबंध भी।
और इस समय, जब विधाएँ टूट रही हैं, एक-दूसरे का अतिक्रमण करते हुए एक-दूसरे में प्रवेश कर रही हैं तब डायरी, संस्मरण, रिपोर्ताज, शब्द-चित्र भी इसी के अंतर्गत लिए जा सकते हैं। हिंदी आलोचना के खतियान का यह उत्कर्ष है।
लेकिन जिस निबंध को निबंध की कसौटी या उत्कर्ष माना जाता है, वह है ललित या व्यक्ति व्यंजक निबंध। यह गद्य की निहायत रम्य और आत्मीय विधा है। यह व्यक्ति की स्वाधीन चिंता का सहज रूपांतरण है और बतरस वाली इसकी मुक्त और उच्छल प्रकृति में लालित्य का सहज उल्लास मिलता है। संवेदना की दीप्ति में जो लालित्य होता है या जो भाव-संवाद नैसर्गिक बल कहीं में मिलता है वह ज्ञान-गुमान और शास्त्र-चिंतन के बोझ-तले दब जाता है। बतरस जैसी स्वच्छंद प्रकृति होती है ललित निबंध की। विधा की अर्गला से मुक्त लेकिन भाव की अर्गला से श्रृंखलित और अनुशासित। गपशप की ललित मुद्रा प्रज्ञा को आलोकित करनेवाले कोण की रचना करती रहती है और तभी बतकही की बात-बात में निकलने वाली बात, एक निरर्थक आलाप-विलाप-संलाप न होकर संवाद के विशिष्ट आस्वाद से संपन्न होती है।
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