Thursday, 28 February 2019

शराब की दुकानें बिना खाद्य सुरक्षा और औषधि प्रशासन के लाइसेंस से चल रही हैं। कभी भी जांच के लिए शराब का सैंपल नहीं भरा गया। साथ ही शराब दुकानदार शराब खरीदने पर उसकी रसीद भी नहीं देते है। अगर कोई उपभोक्ता उनसे रसीद मांगता भी है तो उसको रसीद नहीं दी जाती है। सभी शराब की दुकानदार यह ‘खेल’ करते है। जिसके चलते शराब पीने वालों को मजबूरी में बिना रसीद के ही शराब खरीदनी पड़ती है

Monday, 25 February 2019

मैं तो था पराया,
तूने मुझे अपनाया।
तुमने दिया सहारा,
मैं हो गया तुम्हारा।
में बना भूतपूर्व,
तुम बनो अभूतपूर्व।
मैं बन चला इतिहास,
तुम बनाओ भविष्य।
Rely on your own decisions even if they are not in conformity with decisions of others.
Time is too short...
At least I cannot afford callousness,
I would, learn, think, judge and act before time uses the remote to switch itself to other channel..
Competition is everywhere.
Setbacks are everywhere. Pitfalls are everywhere. They are bound to discourage you whether  you are in Court, Office, industry, Factory, Expedition, Adventure, Trade, Profession, Art, Culture, Sports, Passion, Practice,  War, Military, Space, Air, Sea, Mountains, even at the poles, Antarctica, Jungle.

Sunday, 24 February 2019

जो, जैसा आपका विवेक आपको समझाये, वैसा ही करें।
कोई कबूतर को दाना डाले, कोई जाल फँसाय।
एक गाय का दूध अंदाजे, दूजा देखे नस्ल,
कोई वाको चाम तके, वजन देखे कमअक्ल।

  • हाँ, गलतियाँ तो मुझी से हुई थी न !,

बहुत बड़े सपने देखे, बिना औकात के।
स्टीयरिंग पे पकड़ तो हमारी ही ढीली पड़ी थी,
खामखाह तोहमत आप पे लगा रहा हूँ।
महान बनने के जुनून में मैनें ही नजर अंदाज किया,
इंसान के लोभ, अहंकार, क्रोध, काम के उफान को।

Saturday, 23 February 2019

CAs have a fiduciary relationship vis a vis petty investors and are responsible to report the wholesome compliance and economic discipline to  thousands of millions of equity investors.
CAs are the financial army personnel of an industrialised law driven state.
A goal, a respectable social goal often missed.
Sad , really sad.
CAs have a fiduciary relationship vis a vis petty investors and are responsible to report the wholesome compliance and economic discipline to  thousands of millions of equity investors.
CAs are the financial army personnel of an industrialised law driven state.
A goal, a respectable social goal often missed.
Sad , really sad.
CAs are there to safeguard the interest of each investor and ensure the 100% compliance of financial rules and regulations, and if any departure, violation comes to the eyes of or cognisance of any CA that has to be immediately brought in public domain to be dealt suitably...
Indian CAs served the company directors, chairman only and never the shareholders, nor the company, nor the society.
Indian CAs always felt proud in playing with laws, rules, regulations and we're cunningly assisted by legal brains on both sides of bench...
चोर को थाना, पुलिस, वकील, CA, टैक्स अफसर सब दुहते है। चोर डरा तो अंदर से होता ही है, चोरी के माल में से खुले भाव से बाँटता रहता है।
भारत में टैक्स की चोरी को कोई पाप नहीं मानता।
टैक्स देने वाले को लोग उल्लू बताते हैं।
सारा तंत्र, वकील (इधर या उधर ), CA टैक्स चोरी करने के नये नये रास्ते, कानून तोड़ने के रास्ते खोजने में ब्यस्त है, सरकार, समाज जाये भाँड़ मे।
With so many CAs flooding the market, we are developing a rubber stamp culture where CA shopping is done to see who certifies at a lower rate—something like the notaries who run after you outside every court for getting the job done through them!
Today a good fresher CA gets a CTC of Rs4 lakh to Rs6 lakh (these are among the lucky few) and a CA with 20 years experience in practice is not far off from that figure of income. This leaves quite a bitter taste in the mouth.
If one seriously wants to pursue a career as a CA, one will have to assess the focus area of specialisation, whether one wants to go into the industry or practice. Unless the ICAI changes its role, and becomes more of a quality educator rather than an institute which is flooding the market with ‘qualified’ CAs, who do not find jobs, it would be better to look at other career options.
I would suggest you one more thing join big4 than take transfer after 24 months to mid size firm so you'll have name of big4 and knowledge you'll get in mid size of all fields .

Instead of breaking or cherry-picking the rules, many just follow the inner rules, which have been instilled during their lifetime and have subtly permeated their thinking. They value rules, as it offers the ravishment of a securing, ceremonial rhythm in life and it prevents them from breaking free from their cocoon, all the more because freedom can be so scaring and exhausting. 
The world's 261 international river basins, covering 45 percent of Earth's land surface (excluding Antarctica), are shared by more than one nation.*Even the most cordial and cooperative of neighboring nations have found it difficult to achieve mutually acceptable arrangements to govern their transboundarysurface waters, even in relatively humid regions where fresh water usually is found in sufficient abundance to satisfy most or all needs. When nations are located inaridregions, conflicts become endemic and intense despite otherwise friendly relations or even membership in a federal union. Little wonder the English language derives the word "rival" from the Latin word"rivalis,"meaning persons who live on opposite banks of a river used forirrigation.

Read more: http://www.waterencyclopedia.com/La-Mi/Law-International-Water.html#ixzz5gL639PYc

Friday, 22 February 2019


  • 35 लाख टन लौह अयस्क बिना कागज पत्तर, लाइसेंस के भारतीय बंदरगाहों से कर्नाटक में 2007 के आसपास निर्यात हो गया और कोई पूछने वाला भी नहीं था ?

Thursday, 21 February 2019

Hold on
::
Hon'ble SC is busy in deciding ombudsman for a sports known for everything sporty..
ये चुटकुले नस्लीय, लैंगिक और महिला विरोधी ही क्यों होते हैं ?
ऐसा लगता है कि एक समुदाय, लिंग, रिश्ते का मज़ाक बनाने में मज़ा लेने वाले सब एक हो जाते है.
यह अस्वीकार्य है और इसे ख़त्म होना ही होगा
क्या-क्या, किस-किस को आखिर क्यों कब तक यूँ भूलता रहूँ ?
फ़क़त इस लिये के वे मुझे याद नहीं करते !
उनकी वे जाने ;
मुझे उन्हें याद करने दो।।
भूल जाना भी उतना ही जरूरी है जितना याद रखना।
मेमोरी को डिलीट एक्स्ट्रा एवरीथिंग एंड कूकीज बटन से सैनिटाइज करते रहो।
मेमोरी में डुप्लीकेट सेव करने से बचे।
वह जो बार बार बिना रिक्वेस्ट सामने आ रहा है उससे बचे।
जबान सम्भाल कर रखे। यह बहुत तेज होती है, गहरा घाव करती है, बहुत लंबी चलती है, जहर उगलती है, टेढ़े मेढ़े चलती रहती है, स्वाद, क्रोध, नशा, अहंकार, लालच सबसे पहले इसे ही व्यापता है

Tuesday, 19 February 2019

अगर बिके मेरा ईमान तो पहले खरीददार तुम ही हो जाना।
मुझे ख़बर ना भी हो, सहारा
पा शायद मेरा ज़मीर जग जाये।



गद्य कवियों का निकष है, निबंध हिंदी गद्य का निकष है।
आधुनिक हिंदी का निर्माण भारतेंदु के समय निबंध से ही शुरू हुआ, दूसरे संपूर्ण भारतीय चिंतन इस माध्यम से ही मुखरित हुआ। कवि-कर्म की कसौटी आज भी निबंध है। कवि को संवेदन सघनता और छंद का सहारा होता है पर, इन दोनों के प्रलोभनों को नियंत्रित करके आंतरिक लयबद्धता की ओर अपने को पूर्ण लय में संपृक्त कराते हुए भी, बीच-बीच में अपने को अलग कर देने की अपेक्षा निबंधकार से की जाती है।
निबंध एक ऐसी विधा है कि इसमें प्राथमिक कक्षा के निबंधों से लेकर शोध-निबंध भी आते हैं, विचार प्रधान निबंध भी।
और इस समय, जब विधाएँ टूट रही हैं, एक-दूसरे का अतिक्रमण करते हुए एक-दूसरे में प्रवेश कर रही हैं तब डायरी, संस्मरण, रिपोर्ताज, शब्द-चित्र भी इसी के अंतर्गत लिए जा सकते हैं। हिंदी आलोचना के खतियान का यह उत्कर्ष है।

लेकिन जिस निबंध को निबंध की कसौटी या उत्कर्ष माना जाता है, वह है ललित या व्यक्ति व्यंजक निबंध। यह गद्य की निहायत रम्य और आत्मीय विधा है। यह व्यक्ति की स्वाधीन चिंता का सहज रूपांतरण है और बतरस वाली इसकी मुक्त और उच्छल प्रकृति में लालित्य का सहज उल्लास मिलता है। संवेदना की दीप्ति में जो लालित्य होता है या जो भाव-संवाद नैसर्गिक बल कहीं में मिलता है वह ज्ञान-गुमान और शास्त्र-चिंतन के बोझ-तले दब जाता है। बतरस जैसी स्वच्छंद प्रकृति होती है ललित निबंध की। विधा की अर्गला से मुक्त लेकिन भाव की अर्गला से श्रृंखलित और अनुशासित। गपशप की ललित मुद्रा प्रज्ञा को आलोकित करनेवाले कोण की रचना करती रहती है और तभी बतकही की बात-बात में निकलने वाली बात, एक निरर्थक आलाप-विलाप-संलाप न होकर संवाद के विशिष्ट आस्वाद से संपन्न होती है।

Sunday, 17 February 2019

Law is well settled now after Nahapan SC case that higher Courts will not reverse a conviction if Sanction is defective unless prejudice is shown.
प्यास शिथिल कर प्राण हर लेती है।
भूख  मजबूर कर बेशर्म, निर्दयी, निर्लज्ज,कमजोर बनाती है ।

  1. रॉबर्ट वाड्रा को SPG, VVIP Clearance on एयरपोर्ट,

कश्मीर में अलगाववादियों को टैक्सपेयर के पैसे से सिक्योरिटी, सुविधा-
भाई यह गोरखधंधा मुझे तो समझ में नहीं आता ।
अच्छा सब तुमने किया, तुम्हारा किया, तुम्हारे लिए ?
 मेरे हिस्से में फ़क़त सितम, गम, फ़िज़ा, गर्दिश।
ऊपर से तुर्रा यह कि यह सब मेरा किया , मेरे कारण !!
मैंने कब तुम सबसे हिसाब माँगा ?
कब कुछ भी लिया ?
*The quality of life cannot be raised unless we raise the texture of our thoughts*.
*The depth of our understanding decides our friendworthiness*.
*Did we raise the texture of our thought enough to be deep enough to be understandably friend worthy ?*
*The quality of life cannot be raised unless we raise the texture of our thoughts*.
*The depth of our understanding decides our friendworthiness*.
*Did we raise the texture of our thought enough to be deep enough to be understandably friend worthy ?*
*The quality of life cannot be raised unless we raise the texture of our thoughts*.
*The depth of our understanding decides our friendworthiness*.
*Did we raise the texture of our thought enough to be deep enough to be understandably friend worthy ?*
दुनियाँ की सारी समस्या
जो तुम्हें प्रभावित करती है
-
न मैं अकेला उनका कारण हूँ
न स्वरूप
न मैं अकेला उनका समाधान
--
मैं न था, न हूँ,
हो भी नहीं सकता
क्या हमारे देश में केवल हिन्दू-मुस्लिम-सिख-ईसाई-बौद्ध,
अगड़ा-पिछड़ा, सवर्ण-दलित ही रहते हैं ?
भारतीय कहीं नहीं रहते, बसते क्या ?

Friday, 15 February 2019

सब मिले है भाई -
सेना, सुप्रीम कोर्ट, रिजर्व बैंक, इलेक्शन कमीशन, ई वी एम, सी ए जी, सी बी आई, सेना,  पुलिस, संसद, वोटर, मीडिया, विदेशी राजनयिक, ब्यापारी, उद्योगपति, बुद्धिजीवी, धर्मगुरु, किसान, मजदूर, छात्र, महिला, युवक, मुलायम तक।
सबको मिला लिया
बोलते फिरे कांग्रेस राहुल-ममता माया - अखिलेश-केजरीवाल 
जजों के रूप में एकाउंट्स , रियल स्टेट, मर्जर, एक्वीजिशन, insolvency, audit, वैल्यूएशन आर्थिक प्रचलन, विदेश ब्यापार, आर्थिक प्लानिंग, सर्वे आदि के विशेषज्ञ नहीं होने से राष्ट्र में काले धन की ब्यवस्था वालों को एडवांटेज मिल जाता है
देश की सरहद पर किसानों के बेटे ही शहीद क्यों होते हैं,
कोई हल्दी किंग, लिकरबैरोन, टीवी एंकर, नेता, शेयरमार्केट टाइकून, चार्टर्ड एकाउंटेंट, जज, बैरिस्टर के बेंटे क्यों नहीं हैं
😧😭😧
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ब्यूरोक्रेट्स के अलावा सूचना आयुक्तों को किसी और क्षेत्र से जैसे एकेडमिक्स, पत्रकारिता, वकालत या विज्ञान के क्षेत्र से किसी को क्यों नहीं चुना जाता.'
सुप्रीम कोर्ट से पूछो कि हाईकार्ट के वकील के अलावा जजों को किसी और क्षेत्र से जैसे एकेडमिक्स, यूनिवर्सिटी,  जिला के वकालत खानों से या अन्य विधिमान्य क्षेत्र से किसी को क्यों नहीं चुना जाता.'

Thursday, 14 February 2019

Happiness is state of mind. No one can search or bring happiness in others life. If u r happy, u will automatically spread happiness.
लगभग 30 साल पुरानी बात है। एक बृद्ध नाम जी अपने 13 वर्षीय नाती को ले मेरे काम करने की जगह आ गए। कहने लगे यह जब से आया है इसका हमारे पास मन ही नहीं लग रहा। जाने जाने को कह रहा है। कृपया आप इसका मन लगाएं।
मैंने उन वृद्ध सज्जन को कहा कि आप कैसी बात कर रहे है।
वह बालक बोल उठा, आप नानाजी को क्यों बोल रहे है, नानाजी ने बस आपके बारे में बताया भर है, मैं आया तो अपने मन से हूँ।
में बालक का आत्मविश्वास देख दंग रह गया। पता चला बोकारो  DPS का क्लास 8 का विद्यार्थी है।
मैंने पूछा - मेरे कुछ प्रश्नों का उत्तर दोगे।
बालक बोलता है - पूछिये, में जानता हूँ आप अवश्य कुछ पूछेंगे मुझे जानने पहचानने के लिये।
मैंने पूछा - किन्ही चार लोगों का नाम लो जिनके मुँह से आप अपना नाम सुनना पसंद करोगे।
उसने तड़ाक से जबाब दिया -
गाँव मे मेरी दादी है-अब बहुत दिन नहीं जियेगी उसके मुँह से, मेरे भैया की एक बेटी है, अभी बहुत छोटी है, बोलना शुरू नहीं कि है ,उसके मुँह से, अपने क्लास टीचर प्रिंसिपल के मुँह से, और टी वी के न्यूज एनाउंसर के मुँह से।

उसका जबाब मुझे आज भी ज्यों का त्यों याद है। चमत्कृत करता है
इकतीस साल हुए। एक नामी ब्यक्ति अपने 19/20 वर्षीय  IITian पोते को ले मेरे परिवार के प्रतिष्ठान पर पहुँच गया। शायद उसे कुछ खरीददारी करनी थी। बहुत छोटी।
थोड़ी ही देर में वह अपने दादा को भूल मुझमें रम गया। थोड़ी ही देर में मुझे डांट रहा था। मुझसे उलझ रहा था।
What the hell you are doing at this place ?
He cried " I say , why you are lying and wasting yourself."
He further shouted " your being here in this profile, format is a national loss, "
He asked " do you understand ?"
एक साधारण औकात के ब्यवसायिक परिवार एक इंजीनियरिंग पढ़ रहे युवक को कहते है -आओ आओ मिस्त्री जी।
पाइलट को कहते है - कैसे चल रहा है ड्राइवर साहब ?

एक वकील को दस रुपये का एक नोट फहरा कर बोलते है - नाच मेरी बुलबुल कि पैसा मिलेगा -वकील की औकात

एक सेना के कमीशन्ड अधिकारी को बोलते है - मेरे लिये मरने को तैयार हो जावो न , दो करोड़ तो हम ही दे देंगे।

सरकारी अधिकारियों को कहते है  कुत्ता

सिनेमा कर्मी को बोलते है -सब कुछ बिकता है।

नेता को बोलते है - सब को सब समय सभी रूपों में सुलभ

पढ़े लिखे लोंगों को बोलते है - नौकरों की जमात
किसान मजदूर को बताते है - आलसी
जीवन नहीं है
मक्खन-मिश्री, टाफी-चॉकलेट,
मटरगस्ती फूलटाईम !
यह है एक पुरुषार्थ,
कभी कड़ा कभी नरम, कभी ठंडा कभी गर्म
कभी नमी कभी सूखा,कभी पेटभर कभी भूखा

  • भूत-भविष्य, इतिहास-भूगोल से डरता रहा हूँ मैं! कभी दुबकते हुए, कभी सुबकते हुए! डर तो लगा , पर भागा नहीं, डटा, अड़ा, लड़ा वहीं जहाँ डराया गया।
मैं हारा ही कब था जो कहते फिरते हो कि वह जीता नहीं।
पहले भी लड़ा ही था, लड़ता रहा था,  आगे भी लड़ता रहूँगा, बिना हारे !!
😊🙏😊
बसन्त आता नहीं, लाना पड़ता है, निभाना पड़ता है, उफनने को तैयार रहना पड़ता है, नये पत्तों-फूलों,फलों के स्वागत-सत्कार की तैयारी किये रहना पड़ता है।
इन सबसे पहले पुराने पीले पड़े पत्तों को झड़ने देना ही होगा - तभी बसन्त आवेगा।
💧💦💧
साथ उनका मिले जो सीखते सिखाते चले, कुछ लें, कुछ दें, कुछ निराई गोड़ाई, सिंचाई करते करवाते रहे, न हो तो पुराने सूखे पत्ते ही मिले जिससे अंत में खाद तो बने, नमी तो बनी रहे।
कड़ी धूप से भी कीड़े मकोड़े मरते रहते हैं।
साथ बड़जन, सफल का लो। बड़ों को, स्थापित को साथ लो। उनके साथ उठो बैठो जो पहचान बना पायें है, जिन्हें दुनिया मानती समझती है।

*केवल मनोरंजन से बचो, केवल मनोरंजन के साथ से बचो।*
पाप हमने भी किये, बस स्वीकारे नहीं,
सकारे नहीं
जब तक किसी ने नहीं पकड़ा था
थे हम भी महापुरुषों में शुमार।
अंगुली जो उठी
तो अब हम अपने
मौन रहने का अधिकार भोग रहे।
हमने जो पाप किये थे,
 हम बखूबी जानते ही थे
हमने जो पाप किये थे,
 वे सब भी जान ही गये थे।
बस हम इत्मीनान इस बात से थे,
 कि कुछ नही होगा
उनके पास सबूत,
 गुनाह के गोलपोस्ट तक के नहीं थे।
लगभग 30 साल पुरानी बात है। एक बृद्ध नाम जी अपने 13 वर्षीय नाती को ले मेरे काम करने की जगह आ गए। कहने लगे यह जब से आया है इसका हमारे पास मन ही नहीं लग रहा। जाने जाने को कह रहा है। कृपया आप इसका मन लगाएं।
मैंने उन वृद्ध सज्जन को कहा कि आप कैसी बात कर रहे है।
वह बालक बोल उठा, आप नानाजी को क्यों बोल रहे है, नानाजी ने बस आपके बारे में बताया भर है, मैं आया तो अपने मन से हूँ।
में बालक का आत्मविश्वास देख दंग रह गया। पता चला बोकारो  DPS का क्लास 8 का विद्यार्थी है।
मैंने पूछा - मेरे कुछ प्रश्नों का उत्तर दोगे।
बालक बोलता है - पूछिये, में जानता हूँ आप अवश्य कुछ पूछेंगे मुझे जानने पहचानने के लिये।
मैंने पूछा - किन्ही चार लोगों का नाम लो जिनके मुँह से आप अपना नाम सुनना पसंद करोगे।
उसने तड़ाक से जबाब दिया -
गाँव मे मेरी दादी है-अब बहुत दिन नहीं जियेगी उसके मुँह से, मेरे भैया की एक बेटी है, अभी बहुत छोटी है, बोलना शुरू नहीं कि है ,उसके मुँह से, अपने क्लास टीचर प्रिंसिपल के मुँह से, और टी वी के न्यूज एनाउंसर के मुँह से।
उसका जबाब मुझे आज भी ज्यों का त्यों याद है। चमत्कृत करता है