Wednesday, 30 August 2017


रमेश कुमार रतेरिया 
मारवाड़ी सम्मेलन से मेरा जुड़ाव क्रमिक हुआ। (  १९७५  ) पूज्य हरिराम जी गुटगुटिया , खेमचंद्र जी  चौधरी के पास में बाल  सुलभ उत्सुकता में समाज और सम्मेलन के बारे में जानने को अकारण चला जाता था।  याद पड़ता है एक रक्षपाल शास्त्री जी थे।  एक मातादीन जी गोयल थे। इमरजेंसी का समय था, या ठीक उसके बाद का समय था।   आज के झारखंड के चाकुलिया में नमक के कारण समाज के भाईयों पर केश मुकदमे क्र दिए गए थे।  उसमे बाद में भारूका जी जो बाब में माननीय उच्चन्यायालय के न्यायाधीश भी बने , ने अपनी विद्व्ता से वः केश जीता।  पर मेरा मन इस घटना पर बड़ा खट्टा हुआ।  मुझे सम्मेलन की पत्रिका का पटना का पता मिला , मैंने एक पत्र लिखा।  पत्रिका में वह  छपा।  प्रोफेसर विश्वनाथ जी ने उसे सराहा और उस पर  सम्पादकीय लिखा। देहरी ों सोन के मरोडिया जी थे - विनोद मरोडिया।  आश्चर्यजनक सामाजिक उत्साह और संगठन करता।       किसी क्रम में भागपुर निवासी शंकरलाल जी बाजोरिया से अपने प्रारम्भिक वाम-विचाराग्रह के लिये डांट भी १९७७ -१९७८  के आस पास पड़ी थी।

फलाने को उसके अधिकारीयों ने , सी बी आई - पुलिस  - कस्टम वालोँ ने रंगे हाथो पकड़ा।  फलाँ जेल में।  फलाँ निलम्बित। खेल क्या है।  बस हो गया 

Tuesday, 29 August 2017

राजनीति असम्भव विरोधी तत्वों के समन्वय की साधना है। राजनीतिज्ञ  दूरदर्शी हो तो हजारों साल , लोभी -कामी संकुचित दृष्टि हो तो बंटाधार। 
बाबा आशा-राम  कहाँ नहीं है।  साहित्य , प्रकाशन , सिनेमा ,थिएटर , क्रिकेट , वकालत , पी एच डी , डाक्टरी , फैशन  , प्राइवेट सेक्टर ....... कहाँ नहीं
सुदूरस्थ लक्ष्य बदले नहीं जाते - बस पीढ़ी दर पीढ़ी लक्ष्य की और रिले यात्रा में आगे बढ़ना ही जीवन है। 
बताशे के लिए न शहर न घर जलाइये , कृपा के लिये न पीर-पंडे की देहरी लाँघ अन्दर जाईये। 

बताशे के लिये यूँ शहर मत जला दे
यहाँ तेरे भी जाये सोने आते रहते हैं।
नींद इन्हे यहीं इसी जमीन पे आती है
सकून से सोने स्वर्ग-जन्नत नहीं जाते।
इसी मट्टी पे खेल इनकी हंसी जवाँ हुई
हंसने के लिए ये पीर पंडे तक नहीं जाते। 
https://www.bhaskar.com/news/BIH-PAT-HMU-MAT-latest-patna-news-020502-1865785-NOR.html
एक परिवार ही है परिवार बनाम समाज - राष्ट्र है  एक परिवार 
मोदी! न आदि हैं , न अन्त , न मध्य , न  केंद्र।  वे एक काल खण्ड के केवल वर्तमान है जिनका मूल्यांकन भविष्य करेगा - न की मेरी निंदा - वंदना !

Monday, 28 August 2017

बहुतों के पाप सामने आये तो सही पर बिना जांच के ही वे भगवान बने बने ही स्वर्ग चले गये ,सीधे पट्ट पूर्ति से !
सच है - सच , परस्पर सद्भाव , परस्पर अहिंसा , परस्पर क्षमा , पारस्परिक सहयोग  बहुतों के पल्ले ही नहीं पड़ता। 
अभी भी राजनीतिज्ञ फैसले पर औपचारिक किस्म की प्रतिक्रिया  ही दे रहे हैं। 
Corruption-convict was leading president of India election campaign . Now Rape convict will lead  (      ) ?
मेरी १६ वर्षों तक शिक्षा जैन विद्यालय , कलकत्ता में ही हुई है। 
जैन धर्मावलम्बियों का अभी क्षमावणी पर्व चल रहा है , इस अवसर पर जैन धर्मावलम्बी परस्पर क्षमा मांगते हैं।  इसे अन्यथा न लें।  मुझपर भरोसा तो रख ही सकती थी। 
सम्पूर्ण भारत के लिये एक साथ कम से कम सौ साल का संवैधनिक और विधिक सपने वाला दिमाग - दिल -शरीर -हाथ - हौसला दिखे तो बताना जी !
खुद को हाई प्रोफ़ाइल अतिसाधनसम्पन्न  मुद्दालेह बना , दिखा प्रकारांतर से कोर्ट को प्रभावित करने की कुचेष्टा थी यह। 
धार्मिक किताबों की सारी आलोचना बिलकुल ब्यर्थ है ?  मेरी किताब की हो या आपकी - एक बार आपस में  मिल बैठ जांचिये तो सही। 
हाई प्रोफ़ाइल लोगों के साथ की अपनी फोटो को ऑफिस , ड्राईंग रूम , अपने कार्य स्थल पर लगाने का उद्देश्य ही है भोले लोगों को मुर्ख बनाना। 
 हम और आप पापियों के साथ किसी न किसी बहाने खड़े हो ही जाते है - बस यहीं पापी का मनोबल बढ़ जाता है। 
अब तो पता चल चुका होगा की बड़बोला हो कर नहीं चुप रह कर ही इज्जत मिलती है। 
जिसने जमीन खरीदी -जमींदार , कोमोडिटी वाला ब्यापारी , इंसान बिना भावना जाना -डाक्टर , सबकुछ बिना इंसान जाना इंजीनियर - साइंटिस्ट - जिसने पूरा इंसान-समाज जाना वह वकील-जज। 

Sunday, 27 August 2017

मित्रता और मर्यादा में खट्टी मीठी खटपट चलती रहती है जो मित्रता को प्राण देते रहती है। 
२००८ में एक एकेडेमी में एक रामरहीम थे कतिपय मित्रों के साथ। कोई एक अड़ गया। उसको उखाड़ दिया गया। 
राजा का हो या धर्म का या निति का - कानून जब मानव का सब कुछ परिभाषित व्  नियंत्रित करने का प्रयास करे तो सावधान हो जाये. 
एक कर्नल ही तो पहला या आखिरी नहीं है , इन राजनीतिबाजों को जब जहाँ मौका मिला यही तो किया है। कोर्ट ने आज तक ताकत भर किया है।  सत्य लेकर साफ हाथ से हाजिर तो होइए। 
बस सारी  जेड  सिक्योरिटी का कंसेप्ट ही खत्म करडालो।  परसनल सिक्योरिटी खत्म कर दो। फलाफल सामने  आएंगे। 
विश्व में क्रांति संविधान - ब्यवस्था उखाड़ कर आकस्मिक बदलाव का नाम है।  भारत में यह संवैधानिक ब्यवस्था लगातार लागू करने का नाम है। 

Saturday, 26 August 2017

हम किस समाज में हैं।  पीड़ित के लिये हमारे पास कुछ भी नहीं !
लोकतंत्र न कुलीनतंत्र , न भीड़तंत्र , न भाव - भावनातंत्र।  यह है विधिकतंत्र , न्याय-तंत्र ,यथार्थ तंत्र , समरुप -तंत्र !
इतने हाई प्रोफ़ाइल अपराधी के विरुद्ध मुँह खोलना , सुचिका  या पीड़िता बन आगे आना , साक्ष्य संकलन , अनुसंधान , विचारण निर्णय  कितना तकलीफदेह होता होगा ?

Friday, 25 August 2017

न्यायालय पर प्रश्न उ?ठाने के पहले अपने आप से पूछे - आपने न्याय के लिया क्या किया / न्याय माँगा सो सही - न्याय किया की नहीं।  
तुम्हारे वाले को तो पकडूँगा , मेरे वाले को बचाऊँगा - यह तो नहीं चलेगा !
सभी के अपराध के लिए समान रूप से मुंह खोलिये , अपने वाले के लिए मुंह बन्द - यह कैसे चलेगा , अपने वाले को मंदिर , मस्जिद , गुरुद्वारा में मत छुपाओ। 
मेरा न्याय , मेरे वाला अपराधी , तुम्हारा पाप , तुम्हारा पुण्य - यह खेल मत खेलो 
बाबा  को आज वह जज याद आ रहा होगा जो खुले आम बोलता था मेरे फैसले तो बाबा की प्रेरणा  से लिखे जाते  थे। मैं तो उन्हीं का बनाया हूँ। 
लालू , शहाबुद्दीन , मधुकोड़ा , जयललिता , शशिकला , टू जी , कोयला , कसाब , मेमन ,इन्दिरा , सहारा , शाहबानों , शायराबानों  - सब को देखा जजों ने।  
पहले भी हुआ है - आनंदमूर्ति , आनंद मार्ग याद है न।
जेल का फाटक टूटेगा - बाबा मेरा छूटेगा। 
तन-मन-धन सर्व समर्पण करवाने वाला प्रवचन-विश्वास कहाँ ले जायेगा ?
तन-मन-धन सब का समर्पण मांगते हो , देते हो , करते हो , करवाते हो , तब नहीं सोचा ?
कानून को छिद्र युक्त बनाना राजनीति , उसमें छिद्र खोजना वकालत और छिद्रों को भरना न्यायाधीशगिरी। 
निर्णय की संभावना , लाखों लोग , फैसला आया , हिंसा हुई , लोग भागें , पर किसी के पास निर्णय के अभिनंदन की संभावना का कोई प्रमाण नहीं। पहले से लोग को पता था , तैयार थे। 
 होता है , होता है - हिम्मत से जज के पास सच सच बयान दे के तो देखो !
न्यायालय इतने दबाव में भी कार्यशील ! गर्व है हमारे जजों पर ?
जनसेवा, रॉबिनहुडिज्म बनाम माफियागिरी बनाम बाबागिरी बनाम सत्ता बनाम पैसा !
रही सही कसर पूरी। उनका निर्णय भी आ गया।  जो हो रहा, जो आगे और होगा - जिम्मेदार कोर्ट है।   
एक समय एक बाबा को सर्वोच्च स्तर पर बचा  लिया गया था , इससे भी घृणित आरोपों की जाँच ही सीधे बंद करवा दी गयी थी। हवा तक नहीं लगी किसी को। 
टुकड़े वाले तो एक कैम्पस में ही थे, बीएस बोल भर रहे थे !
इन लोगों ने तो महिला ,सड़क , शहर , सेना , पुलिस , न्यायालय किसी का लिहाज तक नहीं किया।

Thursday, 24 August 2017

श्री मान , कितनों ने जन्म ,  विवाह ,मृत्यु से ही रोजगार निकाल ही न। 
अपराधी और काले की सुरक्षा अब सातवें ताले के बाद आत्यंतिक रूप से परम सुरक्षित एवं फूल प्रूफ । 
काले  का अधिकार , हमारी निजता का अधिकार - जुग जु ग जिओ आप माननीय।
आपने हमारा काला समझा ,उसे बचाया !!
हुर्रे ! काला बच गया !!

Wednesday, 23 August 2017

धन , दृष्टि , ऊर्जा , निश्चय ,धैर्य, हिम्मत - बस आज तक यह समाज इसी पर चलता, अकड़ता , लड़ता  रहा है। 

अंग्रेजों के द्वारा खड़ा किया गया कचहरी का ढाँचा नेटिव लोगों के दमन की संस्था थी और इससे जुड़े लोग अंग्रेजों की ब्यवस्था के दलाल ?
अंग्रेजों और कांग्रेस ने उन अपराधियों , दलालों को खुली छूट दी जो उनके साथ मिल कर चलते थे - विरोध नहीं करते थे !
क्या अंग्रेज झूठे ( सेलेक्टिव ) मुकदमे लादते थें ?
स्वतंत्रता के समय के भुक्त भोगी और वकील सब कांग्रेसी थे ,उन्होंने इसे सत्तर साल  सुरक्षित चलाया  ?
हलाला है - मतलब रोजगार और रोजगारी !
जन्म , विवाह या मृत्यु - हमारे यहाँ  भी तो हलाल करने वाले हैं ही , उनका गोड़ पूजे बिना मुक्ति नहीं !

Tuesday, 22 August 2017

दीन , दीनियाद , धर्म , धार्मिक कर्मकाण्ड  को ब्यापार - पेशा , दुकान , कारोबार धन्धा न बनायें। 

Monday, 21 August 2017

गबन , गोदान , कामायनी कम बिकेगी।  आमला की चटनी भी कम लोकप्रिय।
तो क्या मैं भी चाट ,पकौड़ा का खोमचा लगाऊँ। रंगीन रातें  लिखूँ। 
अपराधियों को सरकारी संरक्षण के लिये सिद्धांत - बहुत गहरी तार्किक  जाँच नहीं, बस लगाये गये आरोपों तक सिमित ।  सच्चाई तक कभी  नहीं। 
बहुत गर्मी लग रही है - यह गर्मागरमों की बस्ती है भाई।  मैं हुआ किनारे !
रौरव नर्क के डर से बचाओ। नर्क के श्राप के डर  से बचाओ। नर्क भेजने और उससे बचाने के ठीकेदारों  से बचाओ। 
कानून और कानूनी संस्थाएँ  राजनीति  के हथियार भर हैं , न्याय के साधन या साध्य नहीं है।जन कल्याण  इसका विषय है ही नहीं 
क्या पूरी काली दाल कभी नहीं दिखेगी या हिम्मत नहीं है काली दाल को देख क्र भी काली कहने की !
अपने पड़ोस में ही रातों रात फॉर्चूनर आने पर और साल भर में ही ग्रेनाइट -संगमरमर पत्थर की ट्रक और दो साल में बन गए चार मंजिले  मकान का रहस्य क्या आप नहीं जानते ?

Sunday, 20 August 2017

कोई भी संस्थापक या प्रवर्त्तक  किसी कम्पनी , ट्रस्ट ,संस्था या पार्टी का मालिक नहीं हो सकता। माता-पिता संतान के स्वामी नहीं हैं। 

Saturday, 19 August 2017

विधि की अनजाने में भी हुई अवहेलना के लिये शर्मिंदा होने वाला , खुद को दंडित करने वाला समाज ही वैश्विक यश पाता  है। 
कानून की पढ़ाई का संबंध केवल कचहरी से ही नहीं है।  इसका उद्देश्य कानून की साक्षरता , जागरूकता , अनुपालन वृद्धि भी है। दैत्याकार कम्पनी अर्थब्यवस्था में विधि का कठोरतम अनुपालन ही एक रास्ता है। 
ईमान खरीदोगे ही नहीं तो वे बेचेंगे किसको ? मर जाने दोउन बेईमानों को उनको भूखे ! पर तुम्हें अपना अपना ही दीखता है !

  • हमें शराब, जर्दा , नशा ,अश्लीलता , वैश्या और भ्र्ष्टाचार , ब्यभिचार , हिंसा के खरीद्दार या दलाल होने में शर्म क्यों नहीं आती ?
मगह मे शस्त्र , मिथिला में शास्त्र 
भला हूँ , बुरा हूँ , मैं फूल तुम्हारी बगिया का। रंग भरे है तुमने , पढ़ाया , लिखाया ,सिखाया , खिलाया पिलाया तुम्हारा ही हूँ। 
धर्म के नाम पर तवा गर्म करने से फुरसत मिले तो कर्म पर भी ध्यान देना।  घृणा ही सब कुछ नहीं है।  उसका त्याग ही भला !

Friday, 18 August 2017

वाम गतः , कांग गच्छति -  काज रसातलाय  गतः 
समाज उत्तेजनाओं और विवशताओं के समन्वय ,सामंजस्य एवं आनुपातिक संरक्षण के लिए गठित संस्था का नाम है। 
आज कानून की पढ़ाई और आज के वकील का स्तर पहले से सौ गुना बेहतर भी हुआ है - भले ही कहीं  कही  ही। 
वकालत के पेशे की सरकार से पृथकता , स्ववित्तपोषित होना ही इसकी स्वतंत्रता और शक्ति की गारण्टी है। 
आपकी कलम भी नाचती घोरती , गुस्साती , झकझोरती , उछल कूद मचाती बड़े मजे से दिन दिन भर बतियाती है - आई ; उठ कर  चली गई : उसके बाद भी अड़ी  रहती है।  जाने के बाद और अधिक जबान लड़ाती है।  आपकी कलम में कित्ती गरम गाढ़ी फ्लोरोसेंट स्याही है , रात  में भी चमकार मारती है। 
हाँ , ये तस्वीर बात करती है !
निन्यानबे प्रतिशत को पता ही नहीं की काला , गन्दा  , भ्र्ष्टाचार  , अनुचित होता क्या है , पैदा कब और कहाँ  किसके द्वारा क्यों किया जाता है। उसने शायद नाम भर ही सुना है।  वह अनुचित-अनैतिक आचरण को जन्म से ही ब्यवहार में अपने से बड़ों के माध्यम से देखते आया है और इसे ही सामान्य प्राकृतिक सामाजिक ब्यवहार मंटा आ रहा है।
 काला , गन्दा  , भ्र्ष्टाचार  , अनुचित संगो पांग समझाया दिखाया बतलाया ही नहीं गया  ! समझ में आवे तो कैसे।  इसका स्वरूप छिपाया जाता है।  इसे सदाचार के रूप में ही सिखाया बताया जाता है। 
कभी किसी कायर को अपनी कमान या लगाम मत दीजिये - कब बीच में छोड़ या तो भाग जायेगा या बैठ जायेगा। 
एक रूपये के कच्चे माल को खाता बही में सौ रूपये का बताने का रास्ता है - उस पर दलाली की कॉस्टिंग मढ़ दो - और कानून वालों ने ही ईजाद किया था यह। 
एक सौ सालों से दलाली करने वाले , खाने वाले , देने वाले ,लेने वाले - इन्हें कानूनी स्वीकृति देने वाले अधिकारी , कानून और कोर्ट को क्या सजा दें। 

Thursday, 17 August 2017

भूखे अथवा असफल आदमी का संयम एक मजबूरी भरा ढोंग भर है।
सफल या पराक्रमी ब्यक्ति की विनम्रता एक रणनीतिक दिखावा। 
कुछ जो आये तो बन के चल दिए
कुछ जो आये तो नीभ के चल दिए
कुछ जो आये तो निभा के चल दिए
कुछ जो आये तो बनाये और चल दिए
बहुत कम ऐसे आये जो जोड़े ,बनाये
चले तो गये पर कभी भी नहीं  गये।   

Wednesday, 16 August 2017

लिखते हो भाई , पर इत्ता खस्ता कच्चा माल दिल-दिमाग की किस बगिया में कब कैसे ऊगा -बढ़ा -फूला -फला  लेते हो - और कैसे इतना टटका टटका परोसते हो - कभी कभी झाल , कभी टेस्टी पंचमेला स्वाद , कभी चूँटी काटते से , कभी तलवार भांजते से , कभी जमाने से लड़ते से - कभी इत्मीनान नहीं रहती कलम आपके हाथों , रात-रात जगाते से.... कैसे रच डालते हो यह अद्भुत संसार आप- वीरू भाई 

Tuesday, 15 August 2017

उम्मीदों ने जब से किनारा किया , दर्द का सैलाब उतरता चला गया !
जब सुनने ही वाला कोई नहीं हो , अब तो रो कर  भी क्या होगा यारों !!
तीन साल पहले तक हमारी चिन्ता थी - हे भगवान अब और बिगड़े नहीं।
अब सोचते है - सुधार  बहुत धीरे है , ऐसे कब कब तक चलेगा। जादू की तरह सब कुछ क्यों नहीं  ?
लाल किला स्वतंत्रता या का प्रतिनिधि प्रतीक क्यों और कैसे ?
और महाराजमहल सा आज का राष्ट्रपति भवन या राजपथ  गणतंत्र का प्रतीक या प्रतिनिधि कैसे ?
सत्तर साल हो गये , अभी भी देशभक्ति घण्टे -दो-चार के लिये साल में दो चार दिन , वो भी गाना गाने-बजाने के बाद कभी-किसी किसी तक आती है  !शेष दिन कहाँ रहती देशभक्ति ?
आपके प्रमोशन , ऑफिस , टारगेट , कोर्ट , क्लाईंट ,केश , करियर , पार्टी , धर्म से भी जरूरी है - हमारा पूरा समाज और भाई-बहनों - बच्चों का समूह और उनका सुरक्षित उन्नत भविष्य। 

Monday, 14 August 2017

आप को समाज जाने ,पहचाने , समझे , इससे जरूरी  है आप सम्पूर्ण समाज को जानने ,समझने पहचानने की प्रभावी कोशिश तो करें। 
आपका काम , उठना , बैठना , लिखना -पढ़ना समाज के अनछुए हिस्से से संवाद करें , तभी उसकी उपयोगिता। 

Sunday, 13 August 2017

क्या सियासतन या शरारतन या दुश्मनी में भी ऐसा कोई कैसे कर  सकता है। और ऐसी घनघोर लापरवाहियाँ हुई तो घोर अपराध , और करी या करवाई गयी तो सजा कानून के साथ समाज भी दे।  
भाई ! लड़े तो वे भी और वीभत्स रूप से अधर्म युद्ध लड़े।  म्लेच्छ -असुर आदि सभी एक ही विश्वास धारा  के थे।  शैव - वैष्णव  भी एक ही धारा  के थे।  बज्रयान -हीन यान , के बीच का संघर्ष। कितने खूनी युद्ध हुए। कलिंग का युद्ध  ? धर्म के नाम पर हमारे यहाँ शास्त्र बताते है - वीभत्स युद्ध हुए , नर ( राक्षस ) सँहार हुए।  लोगों ने कैसी कैसी शपथ ली धर्म के नाम पर 
समझ में नहीं आता , लाखों रूपये नाच-बाजा-गाना-चढ़ावा -मन्दिर -मज़ार -होटल -टीप -बख्शीश पे खर्च करने वाले ए सी होटल के भोजन के GST रेट पर इत्ता मगज मारी  मानो घर गिरवी रखना पड़ेगा  
भारत एकांगी या एकरंगा नहीं है।  हजारों साल की फलती फूलती संस्कार-रिवाज  की संस्कृति है जिसमे परस्पर विरोधी मत समन्वय स्थापित कर उगते -बढ़ते-मिलते-जुलते रहे हैं। 

Thursday, 10 August 2017

चांदनी के साथ गुजारी रात
तारों की जो आई थी बारात
बीएस यद् आ गये वे हालात
शर्म से चाँद भोरे नहीं आया 
सचमुच मैं मुर्ख था जो विरोध और युद्ध में अपने विरोधी से ही न्याय अथवा धर्म की उम्मीद लगाए बैठे था कि विरोध में भी अनुचित अनैतिक अन्याय  नहीं करेंगें। 
यदि आपका विश्वास या उसका वाहक या वाहन कमजोर है तो अपने विरोधी से उम्मीद न करें कि वह  उसकी रक्षा करेगा ! और करेगा भी क्यों ? 
गिरने को जी चाहता है , देखूँ तो सही कौन उठाता है।
हिल गया ,फिसल गया ,देखो मैं तुमसे यूँ मिल गया।

नफ़रत के पल भर के मंजर का जिक्र करने के पहले मोहब्बत की सदियों की फ़िक्र करना।
एक घाव , नया या पुराना का ईलाज दूसरा घाव नहीं हो सकता। 
रंग बिरंगे छींट बूटे  के कपड़े , बहुरंगे फूलों का गुलदस्ता और विचार -आचार -उपचार भिन्नता से सजा सुरक्षित  समाज ही सोहता है 

Wednesday, 9 August 2017

एक न्यायालय में मुकदमे के निस्तार हो जाने से केवल उस मुकदमे का प्रमोशन भर होता है।  मुकदमा रूपी वायरस और फलदायी वृक्ष ज्यों का त्यों। 

Sunday, 6 August 2017

निन्यानबे प्रतिशत विज्ञापन भवनाओं से या मानवीय प्राकृतिक उद्दीपन से वहशी की तरह खेलते है। 
नशा तो नशा है ,हर नशा नशा ही है। नशा वैरायटी एक, मना और वो चालू। यह नहीं होना चाहिये। यह बेईमानी है !अन्याय है!  दोहन है!  ध्यान देना चाहिये यदि ऐसा है तो। 
नये के आने के उत्साह को महसुस तो कीजिये !
आओ ,आज उन तक चल कर वहाँ तक चले !
जिन तलक चल कर उनके अपने भी न चले !!
अपने से छोटी बड़ी , आगे पीछे की पीढ़ियों का प्यार , दोस्ती , मित्रता ही सम्मान है। 

Saturday, 5 August 2017

अहंकार दूसरों को छुद्र दिखाने की सतत प्रतियोगिता है। 
क्या अहमद नाम के गुजराती तोते में कोई इटालियन जान बसती  है क्या ?
अहमद की जान इत्ती किमती !
लोगों ने मार्क्स , लेनिन , ट्राटस्की , स्टालिन एक झटके में उखाड़  फेंके , सद्दाम फेंक दिया ,
आप क्यों परिवर्तन से इतने आतंकित है , और आतंकित हो आप परिवर्तन रोक लेंगे क्या ?

Friday, 4 August 2017

न भूत से डरा ,न आज सेन भूत से डरा ,न आज से मन भरा ,न की सिहरन, न कोइ महान ! हाथ में हथौड़ा , छैनी , दाँत पे दाँत चढ़े ,वक्त की छाती पर एक निशान ! मन भरा ,न की सिहरन, न कोइ महान ! हाथ में हथौड़ा , छैनी , दाँत पे दाँत चढ़े ,वक्त की छाती पर एक निशान !
न भूत से डरा ,न आज से मन भरा ,न की सिहरन, न कोइ महान ! हाथ मेंन भूत से डरा ,न आज से मन भरा ,न की सिहरन, न कोइ महान ! हाथ में हथौड़ा , छैनी , दाँत पे दाँत चढ़े ,वक्त की छाती पर एक निशान ! हथौड़ा , छैनी , दाँत पे दाँत चढ़े ,वक्त की छाती पर एक निशान !न भूत से डरा ,न आज से मन भरा ,न की सिहरन, न कोइ महान ! हाथ में हथौड़ा , छैनी , दाँत पे दाँत चढ़े ,वक्त की छाती पर एक निशान !
न भूत से डरा , न आज से मन भरा , न अगले वक्त की सिहरन, न कोइ महान  !
हाथ में हथौड़ा , दूसरे में छैनी , दाँत  पे दाँत चढ़े ,वक्त की छाती पर एक निशान !
तलाश जारी है , आप सा ही और एक मिल जाये तो जोड़ा लग जाये 
मुझसे बेहतर हजारों आये , आये , गाये , गा कर चले गये।
मैं भी सुनता ,कहता , बह कर गाता ,झूमता चला जाऊँगा !! 
शुक्र है , कोई तो पढ़ता भी है ! पर क्यों ?
नीलामी लगा कर वैश्या  को जन्म देते हैं। भ्र्ष्टाचार भी अहंकारी खरीद्दार बोली लगा कर  पैदा करते हैं । 
जिस दिन विवेक , विद्वता, अधिकार और न्याय को खरीदने का दुस्साहसिक प्रयास खत्म हो जायेगा , उसी दिन भ्रष्टाचार समाप्त !
सेना पर भी पत्थर और इन पर भी !!
ये तो बहुत नाइंसाफ़ी है !
पत्थरों के स्टेंडर्ड का तो ख्याल रखो !!!
किस्से तोता-मैना मुझे नहीं सुहाता.
राजा की विरुदावली लिखूंगा ,गाऊंगा नहीं।
शमा-परवाना -हुस्न-हसीन श्रृंगार रस ! बस भी करो।
मुझे भगवान के नाम पर काहिल -जाहिल मत बनाओ।
जाना तो है ही , चला भी जाऊँगा  ही ,
कुछ कह-कर -सीख -सिखा -देख -दिखा , कह -सुन जाने भर दम दो।
सब कुछ यहीं का मेरा तुम्हारा ही होगा , किसी जन्नत या दोजख का जिक्र तक नहीं..
तुम्हारा और मेरा भोगा  केवल सच सच , और कुछ भी नहीं। 
मोहब्बत से जंग नहीं होती , पर मोहब्बत में जंग जरूरी है।
 जरूरी जंग फर्ज है।
 गुनाह बर्दास्त करना अव्वल गुनाह है।
रही बात जंग के बाद की तो इज्ज़त वो ज़िल्लत तो उसी की रजा भर है।
 पहली च्वायस माफ़ कर  दो यदि नाइंसाफी आप के साथ हो ,और आप को माफ़ करने का हक हो।
 यदि नाइंसाफ़ी गैरों के साथ है तो इंसाफ के लिए सब कुछ लुटा डालो।
और दिनी रास्ते पर अपने ईमान पर भरोसा करो। 
मैं अब भी नित्य सामाजिक प्रशिक्षण विद्यालय और सामाजिक रूप -साधन वृद्धि के लिए  आता -जाता रहता हूँ। 
बड़े लोग - मेनका , मधुलिमये , नंदिनी सतपथी , जिंदल , टाटा , थरूर , जयललिता , आदि के लिए होनरेबल ह्रदय अधिक धडकता है। या फिर सुब्रत , पप्पू ,कर्णन पर गुसियाता है। 
सर झुकने के पहले उठो और चल दो। 
कलम तू न बने क्षत्रिय , न करे, न फैलाये हिंसा !
कलम तू बन चौकीदार , कर तम, हिंसा से रक्षा !! 

Thursday, 3 August 2017

७० या ८० साल से बह रही भ्र्ष्टाचार -धारा और आवभगत करवा रहे ब्यभिचार स्वामी की तीन वर्षों में यह दुर्गति किसने सोची थी ?
भानुमति का कुनबा , फूटा ,टूटा , छूटा , लूटा।
खूब डुबाया , खुद तो डूबा ,सब को भी ले डूबा। 
अक्सर ज्ञात प्रकट सार्वजनिक जीवन वास्तविक पर अप्रकट और अधिकांश के लिए अज्ञात ब्यक्तिगत जीवन के विपरीत होता या पाया जाता है। 
मारवाड़ी समाज में लोहिया ही विचार बीज पुरुष हुए। 
माँ , तू जिस मिट्टी  में नहीं खेलने देती थी कि गंदा हो जायेगा
जिंदगी किताबों की सीख में उससे अधिक गंदी हो गयी !
विपक्षी एकता किचड़ाय  गताः 

Wednesday, 2 August 2017

अहमद पटेल तेरा शुक्रिया
तूने मोदी का नाम सुझाया
पंद्रह साल  की सोनिया तपस्या
उस ईर्ष्या आग में मोदी तपाया 
Save our
Justice Delivery System
playing
VIP Serving Syndrome Tunes. 
न्यायिक ब्यवस्था को
 प्रचार की भूख , 
सेलिब्रेटी बनने की 
लालसा से बचना चाहिए। 

Tuesday, 1 August 2017

खाली कर के मत जाना 
निश्चिन्त है भुवन में ,
जो है योगी और जो है मूर्ख !
वे ही हैं अभागे ,
जो न योगी , न मूर्ख !!
खाली जाना ! 
खाली छोड़ कर मत जाना !!
खाली नहीं छोड़ना !
बोझा भी नहीं छोड़ना !