Wednesday, 8 February 2017


पवित्रता , धर्म , औचित्य , न्याय का विशेष आग्रह न ही करे तो अच्छा है ।
यह दुनिया और प्रभावशाली लोग अपने सन्दर्भ में इन शब्दों से वितृष्णा रखते हैं और आपका यह आग्रह आपको प्रभुता का कोपभाजन और दुनिया में अलोकप्रिय बना देगा ।
आप अंततः एकाकी रह जाओगे , म्यूजियम के बुत की तरह , लोग आवेंगे देखेंगे और चले जायेंगे , किसी के पास आपके लिये समय नहीं होगा ।
सलीब पर टँगे आप या मैं । धर्माग्रही का यही हश्र होना है ।
धर्म स्व की कुर्बानी ले कर ही आज तक पला बढ़ा है ।
धर्म मार्ग केवल त्याग और सन्तोष का ही मार्ग है ।
यह तपस्या है । कटु अनुभव है । केवल कठोरतम निश्चय के भरोसे ही इस मार्ग की यात्रा पूर्ण की जा सकती है ।

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