Saturday, 11 February 2017

इस सृष्टि में अनंत बीज बिना बृक्ष को जन्म दिए नष्ट हो गए।  कितने दूसरे जीवों के भोजन बन गए। कुछ , पशुओं के , कुछ पक्षियों के , कुछ मनुष्यों के , कुछ एकेन्द्रिय जीवों के।
क्या उन बीजों को वृक्ष बनना अच्छा नहीं लगता था क्या ?
अनंत इच्छाएं बिना किसी धारणा के ही प्रतिदिन मर जाती है। अनंत धारणाएँ  भी प्रति दिन अकारण ही शांत हो जाती हैं। पुनः पुनः चंचल होती रहती है , पुनः पुनः शांत होती जाती है।
अनन्त प्रयास असफल होते रहे है।  क्या सभी प्रयासों के पीछे कोई कारण रहा ही होगा ?
 फिर अनंत प्रयास सफल भी तो होते ही रहे हैं। क्या सभी के पीछे विशिष्ट पुरुषार्थ रहा ही होगा ?
सफलता ही केवल सफलता है।  सफलता ही इष्ट है। सफलता ही सत्य है। सफलता ही ब्रह्म !!
असफ्ता ही असत्य है ,अधर्म है।

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