इस सृष्टि में अनंत बीज बिना बृक्ष को जन्म दिए नष्ट हो गए। कितने दूसरे जीवों के भोजन बन गए। कुछ , पशुओं के , कुछ पक्षियों के , कुछ मनुष्यों के , कुछ एकेन्द्रिय जीवों के।
क्या उन बीजों को वृक्ष बनना अच्छा नहीं लगता था क्या ?
अनंत इच्छाएं बिना किसी धारणा के ही प्रतिदिन मर जाती है। अनंत धारणाएँ भी प्रति दिन अकारण ही शांत हो जाती हैं। पुनः पुनः चंचल होती रहती है , पुनः पुनः शांत होती जाती है।
अनन्त प्रयास असफल होते रहे है। क्या सभी प्रयासों के पीछे कोई कारण रहा ही होगा ?
फिर अनंत प्रयास सफल भी तो होते ही रहे हैं। क्या सभी के पीछे विशिष्ट पुरुषार्थ रहा ही होगा ?
सफलता ही केवल सफलता है। सफलता ही इष्ट है। सफलता ही सत्य है। सफलता ही ब्रह्म !!
असफ्ता ही असत्य है ,अधर्म है।
क्या उन बीजों को वृक्ष बनना अच्छा नहीं लगता था क्या ?
अनंत इच्छाएं बिना किसी धारणा के ही प्रतिदिन मर जाती है। अनंत धारणाएँ भी प्रति दिन अकारण ही शांत हो जाती हैं। पुनः पुनः चंचल होती रहती है , पुनः पुनः शांत होती जाती है।
अनन्त प्रयास असफल होते रहे है। क्या सभी प्रयासों के पीछे कोई कारण रहा ही होगा ?
फिर अनंत प्रयास सफल भी तो होते ही रहे हैं। क्या सभी के पीछे विशिष्ट पुरुषार्थ रहा ही होगा ?
सफलता ही केवल सफलता है। सफलता ही इष्ट है। सफलता ही सत्य है। सफलता ही ब्रह्म !!
असफ्ता ही असत्य है ,अधर्म है।
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