Wednesday, 8 February 2017


संस्थाएं तो लगभग सारी दिनरात सवालों के घेरे में है , सबसे अधिक तो वे हैं जिनके बारे में किसी को कोई सवाल पूछने का कोई हक तक है ही नहीं ।
तीन करोड़ लंबित मामले - पर प्रश्न करने तक का अधिकार नहीं ।
प्रस्तावना में पहला ही शब्द है - न्याय ।
पर इसे ही मांगने ,प्राप्त करने का कोई साधन नहीं ।

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