Wednesday, 22 February 2017

सचमुच बड़ों के साथ उठना बैठना भी एक कठिन काम है। बच्चे का विद्यालय जाना एक कठिन काम है। वहां बच्चों को अपने से  साथ बैठना ,उठना , बोलना , चलना पड़ता है , अनजान लोगों  के साथ बात चित करना सीखना पड़ता है।
मैं शुरू से ही अपने से बड़ों के प्रति अनायास आकर्षित हो जाया करता था। मैं सोचा करता था कि ये भी तो किसी माँ के पुत्र ही तो होंगे।
महात्मा गाँधी , नेल्सन मंडेला ,विवेकानन्द , हिटलर ,न्यूटन ,सेक्सपियर ,चैतन्य , मार्टिन , दयानंद , विद्यासागर , दा विन्सी , आर्कमिडीज ,आर्यभट्ट , तुलसी  - क्या ये सभी अपनी क्या ये सभी अपनी अपनी माँ की गोद में वैसे ही नहीं खेले होंगे जैसे मैं। 

Monday, 20 February 2017

Wednesday, 15 February 2017

औरंगाबाद का इलाका  भारी  गरीबी का मारा हुआ है।  वैसे इस जिले का अच्छा खासा भाग सिंचित है। खेती भी होती है , पर खेती जीवन चर्या है , व्यवसाय नहीं।  खेत है - जमीन है पर यह अस्तित्व है , सम्पत्ति नहीं , सम्मान है , साध्य है पर मात्र साधन नहीं।  भवन यदि कहीँ दिखे तो भावना जाने , माने।  उसका मूल्य न लगावें।
वर्तमान में लोगों के पास जमीन से चिपके रहने के आलावा कोई काम नहीं है।  खेत जमीनों के साथ  लगाव -जुड़ाव के कारण लगभग सारी आबादी प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से जमीनों को बचाने , हड़पने , बेचने या खरीदने  के क्रम  में लड़ती झगड़ती , कचहरी दौड़ती , थानेदारों , राजस्व कर्मचारियों , अमीनों के पीछे दौड़ती भागती नजर आती है।
खेती तो है , पर उसका न तो कोई ऊद्देश्य , न गन्तब्य , न कोई निर्धारित स्वरूप - बीएस जो होते आया है किसी तरह रस ७०-८० % तक निबाह देना है।  जो इससे अभी भी जुड़े है वे श्रद्धा से नहीं जुड़े मजबूर से है - पर छोड़ कर  करें तो क्या। मुझे तो समझ में आज भी नहीं आया की यह खेती , इस स्वरूप में  श्रम का नियोजन है या अपब्यय।
जनसँख्या बढ़ती चली गयी।  जनसँख्या -बढ़ते परिवार के दबाव में गांव के अगल बगल के खेत नई फूस की झोपड़ियो में तब्दील होते चले गए। शहरों का आकार बढ़ता चला गया। पेड़ कटते चले गए। जमीन की ऊपरी सतह बेरहमी से खरोंच दी गई। जिन खनिजों को बनने में लाखों करोड़ों वर्ष लगे होंगे उन्हें बेरहमी से निकल जाने लगा। पेड़ , बृक्ष  , लता , झाड़ , झाडी , घास , खर , पतवार , जानवर , पक्षी , मल , मूत्र , जल , वायु , मछली , नदी , तालाब , पहाड़ , मन्दिर , मस्जिद - धन , धर्म, शिक्षा , शिक्षक , प्रशिक्षक , चिकित्सा , चिकित्सक , लेखन , लेखक , लेख , पुस्तक , विचार , कलम , कूची , गाना , बजाना , नाचना , कूदना , खेलना , पुरुष , स्त्री ,परिवार - सब कुछ ब्यापारिक सामग्री  बन गए। जमीन पर बेतहासा दबाव बढ़ गया।  सब कुछ असन्तुलित हो गया। लोगों को अनावश्यक रूप से राजनीती की पट्टी पढ़ाई गयी।  अपराध वृत्ति को बढ़ावा मिला।  दुःसाहस आम होता चला जा रहा है।  नियंत्रण बहुत कम होता जा रहा है।  कायरता , दब्बूपन , डॉ भी बढ़ गया।  अनुचित से न परहेज न कोई विरोध।  नुल्य बदल गया।  नई परिभाषा गढ़ी जाने लगी।
इसी उहापोह के बिच , इन्हीं सब के  फलाफल स्वरूप डर  कर कहीं  अपराधियों से , कहीं ब्यापारियों से , कहीं  धार्मिक नेताओं से राजनीति  ने सहायता मांगनी शुरू की और गठजोड़ बना लिया।
अपने राजनैतिक षड्यन्त्र के , अपने कुकृत्य  के फलाफल स्वरूप राजनेता कभी कभार पर नियमित रूप से अशांति , युद्ध  आदि का ढोंग किया करते हैं। इन युद्धो में कतिपय निरीह लोग मर जाते है  या मार दिये जाते हैं या मरवा दिये जाते है - एक आतंक का वातावरण बना रहे इस लिए।
मर जाने के लिए जोश चढ़ाने वाला वातावरण बनाया जाता है।  मरणा मारना सिखाया जाता है।  मरने मारने के साधन जुटाए जाते हैं। विभिन्न नाम- कारकों के आधार पर उन्माद पैदा किया करवाया जाता है। गीत लिखवाये जाते है।  बजे बजवाये जाते है -  उकसाने के लिए। हमको आपको शहीद होने के लिए ललकारा जाता है - कभी नदी के इस पार , कभी उस पार ,

Tuesday, 14 February 2017

औरंगाबाद , बिहार , में जिन दिनों मैं  गुंथा  जा रहा था , मेरी मिटटी को बनाया जा रहा था ; उन्हीं दिनों मैंने पहली बार जाना कि  मट्टी की सोंधी महक , सुगन्ध कैसी होती है।
मैं कलकत्ता में जन्मा था।  वहाँ मट्टी के दर्शन तक  भी नहीं होते थे।  उस वक्त भी नहीं ,होते थे ,  आज भी नहीं होते।  हुगली  नदी की मिटटी छोटी छोटी टोकरियों में वहाँ उस वक्त लगभग पचास साल पहले बिका करती थी। अब तो वह  भी कम हो गई है।  कलकत्ता पूरा का पूरा कंक्रीट का  जंगल था ,है और आगे  जाने किस और भी वीभत्स रूप को प्राप्त करेगा।
डलहौजी के पार इडेन गार्डन के आस पास का इलाका मैदान इलाका कहलाता था।  वही हवा ,धूप , घास , वृक्ष दीखते थे।  .सुबह के समय इन मैदानों में मॉर्निंग वॉक करने वालों की खासी तादाद जुटती है। तब भी जुटती है।  अब कुछ अधिक ही हो गई है।  समूहों  में अभी भी नई उम्र के बच्चे क्रिकेट आदि खेल खेलने को इकट्ठा होते है।  तब  भी हुआ करते थे।  तब खेलों का उतना उन्नत एलोक्ट्रोनिक रूप नहीं था।  अब है।  यांत्रिक रूप।  बहुत फ़ास्ट।  उस वक्त भी था , पर अपने वक्त के हिसाब से था।  उस वक्त वहाँ  की मिक्स भीड़ थी।
अब तो कलकत्ते के बड़े लोगों ने नये इलाके खोज लिए है।  पर उस वक्त यह मैदान इलाका , इसके प्लेग्राउंड ,यहाँ की पान , पुचका , भेल पूरी ,झाल मुड़ी ,आइस क्रीम , चनाजोर , सॉफ्ट ड्रिंक, उसकी आड़ में बिकता हॉट ड्रिंक  आदि और पैसे वालों की सायंकालीन देर रात तक की भीड़ के लिये प्रसिद्ध , कुछ कुछ कुख्यात था।
इसी मैदान के हिस्से में विख्यात विक्टोरिया मेमोरियल की भब्य इमारत है।  अब इसका उपयोग एक म्यूजियम की तरह किया जा रहा है।  इसी मैदान के एक तरफ नमी गिरामी कम्पनियों की आफिसों वाली इमारतें है।  कुछ अंग्रेजों के जमाने की।  कलकत्ते की नामी होटलें , कुछ सिनेमा हॉल भी इसी और हैं।
 इसी मैदान के एक कोने में क्लबों के हरे रंग के झोपड़ीनुमा क्लब रूम है , उनके अस्थायी कब्जे के प्लेग्राउंड है ,सब कुछ अस्थाई सा , कोई खास पक्का निर्माण इन क्लबों में नहीं था।  कलकत्ते के नवयुवकों का एक वर्ग इन क्लबों से जुड़ा था।
सन ७० के आसपास फुटबाल और  क्रिकेट के खेलों के क्लब  अधिक संगठित थे। गोल्फ , और रेस , ये अधिक संगठित खेल थे , पैसा बहुत अधिक होता या लगता था , बड़े लोगो का भब्य खेल , भब्य क्लब , वि आई पि कल्चर।
अब तो बहुत तरह के खेलों के क्लब स्थापित हो चुके हैं।
पूर्वी भारत में खेलों के सन्दर्भ मेंजैसा उत्साह कलकत्ते में देखने को मिलता है वह  दुर्लभ है। 

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Monday, 13 February 2017

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Sunday, 12 February 2017

हथेली भर के गड्ढे में मुट्ठी दो मुट्ठी पानी में एकत्रित पानी में  नहाते , किल्लोल  करते देखता हूँ तो लगता है की मेरी भी यही स्थिति है।
बड़ के पत्ते से सुबह फिसलती ओस की बून्द  को किसी कौए को पीने की चेष्टा करते देखता हूँ तो  

Saturday, 11 February 2017


shshhhh,make no noise
my tears are asleep
my emotions are on voyage
let 'em not w/peep

My tears are always mine
none 'an see them ever
no question, never thine
how so ever,who so ever

the tears are for you, I know
you are within me, you know
'll play,rear,talk to th'm ,I know
Why n why, I will never show
 
Big dreams alone are not enough. Big dreams lead you to do or die zone and if you fail to do you will have to die.

If you dream of gold medal you must know that all other around you having the same dream cannot be with you and before you lay your hands on gold medal you have to leave them behind, come what may.

You must further know that they all are trying to leave you behind .

Journey for every gold medal passes through elimination rounds. You get eliminated if you are weak. If the man beside you is stronger,he will push you out and you get eliminated.

This journey is not always fairly regulated. Rules are quite often manipulated.

Be ready to learn it ,understand it ,face it and ultimately bear it.
 जीवन की लम्बी यात्रा ने  बहुत कुछ दिया।  सच तो यह है की उनका वर्णन नहीं किया जा सकता। मिठास या तीतापन ये शब्द तो लिखे जा सकते हैं।  इन शब्दों को पढ़ने के बाद अनुभवी लोग इन स्वादों की कल्पना भी कर पायेंगें पर मिठास या तीतेपन को लिख कर या कह कर  , सुन - सुना कर समझ या समझा कर  नहीं जाना जा सकता।
जीवन के अनुभव मैं यथा शक्ति , यथा रूप लिखने -कहने की कोशिश कर  रहा हूँ , पर खिन शब्द चूक जाते हैं कहीं मैं खुद  ही चूक जाता हूँ।
अपनी ग़लतियाँ , अपनी मजबूरियाँ , अपने भ्र्म , अपनी नादानियाँ , अपनी बेवकूफियाँ , अपनी ही दुष्टता , अपना ही पाप-पूण्य , अपना किया या न किया , अपना भुला या न भुला - यथारूप कहना -लिखना- बता पाना  इतना भी सहज नहीं होता।
कुछ अनुभव इतने कटु होते है कि उनका पुनः स्मरण जीवन में कडुवाहट को पुनर्जीवित क्र देते है। बुद्धि - विवेक -हृदय का एक अंश ऐसे प्रसंगों से पुनः दो चार होने के लिए तैयार ही नहीं होता।
क्या करूँ ,एक तरफ बुद्धि , दूसरी ओर विवेक  और अलग से द्रवित हृदय - इन सब में रचा  बसा   मेरा अनुभव जो जब भी होगा -आएगा-जायेगा इन्हीं मार्गों से ; और फिर खुद को आपादमस्तक आमूल चूल आप सब के सामने पूर्ण रूपेण खोल देने का मेरा संकल्प।
आप सोच सकते है स्वयम को निरावृत करना कितना कठिन है।
कभी कभी सोचता हूँ दिगम्बर मुनि महाराजों के दीक्षा के क्षण कैसे होते होंगे।
आज यह सब लिखते समय सोचता हूँ की कृष्ण किस प्रकार अर्जुन के समक्ष दिब्य हुए होंगे।
ब्यक्ति जब आवरण से मुक्त होता है तभी वः दिब्य होता है। ईश्वर जीव को बिना आवरण के ही भेजता है और अंततः बिना आवरण के ही वापस ग्रहण करता है।

इस सृष्टि में अनंत बीज बिना बृक्ष को जन्म दिए नष्ट हो गए।  कितने दूसरे जीवों के भोजन बन गए। कुछ , पशुओं के , कुछ पक्षियों के , कुछ मनुष्यों के , कुछ एकेन्द्रिय जीवों के।
क्या उन बीजों को वृक्ष बनना अच्छा नहीं लगता था क्या ?
अनंत इच्छाएं बिना किसी धारणा के ही प्रतिदिन मर जाती है। अनंत धारणाएँ  भी प्रति दिन अकारण ही शांत हो जाती हैं। पुनः पुनः चंचल होती रहती है , पुनः पुनः शांत होती जाती है।
अनन्त प्रयास असफल होते रहे है।  क्या सभी प्रयासों के पीछे कोई कारण रहा ही होगा ?
 फिर अनंत प्रयास सफल भी तो होते ही रहे हैं। क्या सभी के पीछे विशिष्ट पुरुषार्थ रहा ही होगा ?
सफलता ही केवल सफलता है।  सफलता ही इष्ट है। सफलता ही सत्य है। सफलता ही ब्रह्म !!
असफ्ता ही असत्य है ,अधर्म है।
श्रम उत्पादक रहेगा या नहीं , यह भविष्य के गर्भ में है।  उत्पादक रहेगा भी तो उपयोगी कब , कितना , किसके लिए होगा यह भी भविष्य ही बताएगा।
यह एक रहस्य है।  इसका पूर्वानुमान लगाने की कोशिश परिश्रम , सावधानी और समझ से की जा सकती है। कितने  सफल होंगे कोई नहीं बता सकते।
नौकर वृत्ति न तो इस रहस्य को समझने की कोशिश करती है , सम्भवतः समझ भी नहीं सकती है ; और सबसे ऊपर  - इस पचड़े में पड़ना ही नहीं चाहती।  वह  अनिश्चितता है यह जानते हुए भी इस अनिश्चितता का सामना करने को तैयार नहीं।
ऐसी वृत्ति वाले लोगों  का सोच समाज का भला नहीं क्र सकता।
एक समय की क्रन्तिकारी विचारधारा इसी कारण अपनी प्रासंगिकता खो बैठी है। साम्यवाद में मनुष्य के श्रम  में अंतर्निहित अनुत्पादक रहने की एक सम्भावना का उचित आकलन नहीं किया गया।
समाज का पूरा का पूरा तबका सफलता में तो हिस्सेदार होने के लिए तैयार रहता  है पर असफलता में अधिकांश भाग खड़े होते है।
असफलता के क्षणों में जो छोटा सा वर्ग स्वेच्छा से जिम्मेवारी लेने आगे आता है, भूखे रहने को तैयार रहता  है उस वर्ग के त्याग का क्या कोई महत्व नहीं है  ?
समय वाद में इस विंदु का समुचित अध्ययन हुआ ही नहीं।
वह  वर्ग जो स्वेच्छा से असफलता की जिम्मेवारी लेने आगे आता है , क्या वह अतिरिक्त पारितोषिक का अधिकारी नहीं है। साम्यवाद में इस अवधारणा का मूल्यांकन किया ही नहीं गया।
जिस समाज में जितने लोग इस अनुत्पादक श्रम  के खतरे को स्वेच्छा से वहन करने के लिए आगे आते हैं वः समाज उतना ही समर्थ और प्रगतिशील होगा।

Wednesday, 8 February 2017

Judicial discussion by R . K . Rateria: सफलता आपसे बस अगले प्रयास , एक कदम और जितनी दूर ह...

Judicial discussion by R . K . Rateria: सफलता आपसे बस अगले प्रयास , एक कदम और जितनी दूर ह...: सफलता आपसे बस अगले प्रयास , एक कदम और जितनी दूर है । अभी रुकना नहीं है !!

पवित्रता , धर्म , औचित्य , न्याय का विशेष आग्रह न ही करे तो अच्छा है ।
यह दुनिया और प्रभावशाली लोग अपने सन्दर्भ में इन शब्दों से वितृष्णा रखते हैं और आपका यह आग्रह आपको प्रभुता का कोपभाजन और दुनिया में अलोकप्रिय बना देगा ।
आप अंततः एकाकी रह जाओगे , म्यूजियम के बुत की तरह , लोग आवेंगे देखेंगे और चले जायेंगे , किसी के पास आपके लिये समय नहीं होगा ।
सलीब पर टँगे आप या मैं । धर्माग्रही का यही हश्र होना है ।
धर्म स्व की कुर्बानी ले कर ही आज तक पला बढ़ा है ।
धर्म मार्ग केवल त्याग और सन्तोष का ही मार्ग है ।
यह तपस्या है । कटु अनुभव है । केवल कठोरतम निश्चय के भरोसे ही इस मार्ग की यात्रा पूर्ण की जा सकती है ।

सफलता खून , टोपी , थैली , प्याले , निवाले और बिस्तर के आग्रह - समर्पण के रास्ते आती है ।
धर्मबल या भुजबल या नीतिबल तो हाथी के दिखाने के दाँत हैं ।
बुद्धिबल जब कुटिल हो ऊपर के रास्ते चलता है तो सफलता आ जाती है ।

अजीब हैं ,हम ,आप और सब ।
अच्छे से अच्छे और बुरे से बुरे , नैतिक ,अनैतिक ,उचित ,अनुचित , लाभदायक अथवा नुकसानदेह , आरामदेह अथवा तकलीफदेह , सब कुछ के प्रति एक बार तीब्र अच्छी या बुरी प्रतिक्रिया करते है और शीघ्र ही उसी में रम जाते है ।
हमें सब कुछ स्वीकार सा है ।
हम अपने चारों और से कोई एक भी चीज ,भाव , पदार्थ समूल सर्वभावेन निकाल फेंकने के लिये सामूहिक तौर पर स्वेच्छया तैयार ही नहीं होते ।
बहुत जल्द गर्म और उससे पहले ठन्डे । गर्म के साथ गर्म ,ठंडे के साथ ठंडा ।
जो हमे जिधर चाहे हाँक लव जाये ।
पेट में बस जीने भर कुछ रहना चाहिये । मान अपमान की परवाह किये बिना हम जी लेते है ।
Hurray , now we have wisest apex body for drafting manuals for all and everyone , media , games , investor , banker , builder , investigator , financial institutions , politicians , constitutional institutions , associations , legislators , executives , police , farmers , traders , doctors , scientists , educational institutions , examination controls , pollution control, environment regulation , mining , technology uses , national entertainment policy , traffic control , sanitation management , heritage management temple management , Red light area ,noise , mental health houses , operation theater , dress for students, heights of dam , bed hours and techniques , love places and techniques...................
सफलता आपसे बस अगले प्रयास , एक कदम और जितनी दूर है । अभी रुकना नहीं है !!

पढ़ना ,सीखना फिर भी सरल है ।
पढ़ाना , सिखाना बहुत कठिन ।
पढ़ाने ,सिखाने के लिए पहले खुद अच्छे से पढ़ना ,सीखना पड़ता है फिर पढ़ाना ,सिखाना भी अलग से सीखना पड़ता है ।
पढ़ाना ,सिखाना एक कर्तब्य है ,धर्म है , दायित्व है कला है ,विज्ञानं है ,अभ्यास है , भार है ।
सर्वेन्ट उपयोगी हो न हो , बॉस की ईगो जरूर सर्व करें ।
मैंने एकाधिक बार देखा - आप यदि बॉस की डांट बिना चूं चप्पड़ सुन सकते है ,बॉस के गलत अनुचित ,अनैतिक निर्णयों को देख समझ कर भी हँस सकते है , चुप रह सकते है तो आप सफल सर्वेन्ट हो प्रमोशन भी पाते रह सकते है ।
सर्वेन्ट उपयोगी हो न हो , बॉस की ईगो जरूर सर्व करें ।
मैंने एकाधिक बार देखा - आप यदि बॉस की डांट बिना चूं चप्पड़ सुन सकते है ,बॉस के गलत अनुचित ,अनैतिक निर्णयों को देख समझ कर भी हँस सकते है , चुप रह सकते है तो आप सफल सर्वेन्ट हो प्रमोशन भी पाते रह सकते है ।

यदि आप सर्वेन्ट प्रोफ़ाइल में हो तो सिर्फ उतना ही करो जितना आपके बॉस ने कहा ,उतना ही जबाब दो जितना पूछा जाये , उसी को बताओ जिसे पूछने का अधिकार है ,उसी का कहा करो जिसे कहने ,करवाने का अदिकार है ।
यदि आप से पूछा जाये - काम हो गया ?
यदि आपका उत्तर नौकर प्रोफ़ाइल में होने के बावजूद है - जी , तीन बजे ही ।
तो इस उत्तर में " तीन बजे ही " शब्द अनावश्यक थे ।

सर्वेन्ट उपयोगी हो न हो , बॉस की ईगो जरूर सर्व करें ।
मैंने एकाधिक बार देखा - आप यदि बॉस की डांट बिना चूं चप्पड़ सुन सकते है ,बॉस के गलत अनुचित ,अनैतिक निर्णयों को देख समझ कर भी हँस सकते है , चुप रह सकते है तो आप सफल सर्वेन्ट हो प्रमोशन भी पाते रह सकते है ।

आप की स्वीकृति या अस्वीकृति से भयभीत होने या चमत्कृत होने से मुझे क्या प्रयोजन ।
ये सब मुझे मेरे मार्ग से विचलित नहीं कर सकती ।
मैंने अपना मार्ग स्वविवेक से अपने बूते चुना है और एक एक कदम चला जा रहा हूँ ।
मैं हर समय हर ब्यक्ति को प्रियंकर ही लगू ,जरूरी नही ।
मुझे अप्रीतिकर राहों पर चलना ही होगा तो वह भी सही ।
आप मुझे नियंत्रित करने का विचार - स्वप्न त्याग कर कुछ हल्के तो हो ही सकते है ।

संस्थाएं तो लगभग सारी दिनरात सवालों के घेरे में है , सबसे अधिक तो वे हैं जिनके बारे में किसी को कोई सवाल पूछने का कोई हक तक है ही नहीं ।
तीन करोड़ लंबित मामले - पर प्रश्न करने तक का अधिकार नहीं ।
प्रस्तावना में पहला ही शब्द है - न्याय ।
पर इसे ही मांगने ,प्राप्त करने का कोई साधन नहीं ।
You must act, react ,interact ; dress, address and redress as per the norms of your profile and position.
एक बार ही तो शहीद होना होता है , सिर झुकाने और सिर उठा के जीने के साथ सिर कटाने के भी विकल्प होते ही है -बस कुछ लोग आदतन हिज मास्टर वायस नहीं बन पाते , वे अपने अधिकारों का उपभोग दूसरों को नहीं करने देते और यही अस्तित्व का पोख्ता प्रमाण होगा .

Ramesh Rateria Motivational speaker

Ramesh Kumar Rateria

Ramesh Rateria R K Rateria

R k Rateria Ramesh Rateria