Monday, 7 September 2015

जब भी मैं अपने आप को किसी बन्धन से बान्धने की कोशिश करत् था तो अनेकानेक परस्पर विरोधी  शक्तियाँ अत्यन्त तीब्र हो मेरा और मेरे संकल्प का विरोध करने लगती थी .
इसी विरोध के कारण मैंने विरोधी शक्तियों से एक साथ लड़ना सीखा. मुझे स्पष्ट समझ में आया कि यदि मैं बन्धनों से भागूँगा , यदि मैं नंगा हो कर बन्धनों से मुक्त हो ही जाउँगा तो अन्ततः शर्म मुझे ही आयेगी .
मैं किन शब्दों में अपनी माँ के उन निर्देशों का उल्लेख करूँ समझ मेम नहीं आता.
पर हाँ, ुन्होंने बड़े स्पष्ट रूप से बताया था कि जब कभी अपने को बाँधोगे, बाँधे जाओगे ,या ट्रेनिंग के लिये जाओगे तो थोड़ी बहुत असुविधा तो होगी ही .
जिसने दाँत पर दाँत चढ़ा ,दम बाँध, मुट्ठी बन्द , साँस खीँच ,उस असुविधा को बरदास्त कर लिया , स्वीकार कर लिया, वह तो बाद में कंचन हो गया और जो उस ट्रेनिंग काल की असुविधा से घबड़ा गया, भाग गया या जिसने ट्रेनिंग बीछ में छोड़ दी , वह बस गया काम से .उसका जीवन बड़ा दुखःद बीतता है.

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