Wednesday, 23 September 2015

वे जो संघर्ष करते हैं, लड़ने-मरने- जीतने -हारने और इन सब के बाद भी फिर से एक बार उठ कर दौड़ते हुए लड़ते रहने को तैयार हैं, वे सदैव प्रिय ही हो ; जरूरी नहीं - वे अप्रिय लगने , दिखने और समझ लिये जाने को तैयार रहते हैं - क्यों कि वे सफलता से अधिक सार्थकता को महत्व देते हैं और तात्कालिक से अधिक दिर्घकालिक दृष्टि रखते हैं.
वृक्षों से ही जंगल बनते हैं.

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