वे जो संघर्ष करते हैं, लड़ने-मरने- जीतने -हारने और इन सब के बाद भी फिर से एक बार उठ कर दौड़ते हुए लड़ते रहने को तैयार हैं, वे सदैव प्रिय ही हो ; जरूरी नहीं - वे अप्रिय लगने , दिखने और समझ लिये जाने को तैयार रहते हैं - क्यों कि वे सफलता से अधिक सार्थकता को महत्व देते हैं और तात्कालिक से अधिक दिर्घकालिक दृष्टि रखते हैं.
वृक्षों से ही जंगल बनते हैं.
वृक्षों से ही जंगल बनते हैं.
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