मेरे
एक
परम
श्रद्धेय
थे ,
अभी
सशरीर
हैं, जन्मजात
महान
थे- पूरा
लम्बा
जीवन
सार्वजनिक
सम्मानों
,स्विकृतियों
, सामाजिक
, आध्यात्मिक
, राजनैतिक
, शेक्षणिक
महामन्
के
रूप
में
आज
भी
स्वीकृत
है. भारतीय
परिपेक्ष्य
में
लगभग
सभी
पदों
के
लिये
वे
समर्थ
संभावित
ब्यक्तित्व
थे. मेरे
अभिन्न
ने
मुझे
उनसे
परिचय
करवाया. लगभग
चार-पाँच
घन्टे
मैं
उनकी
छाया
की
तरह
एक
जलसे
में
उनके
व्यक्तिगत
साहचर्य
में
था .
जिस
तरह
मेरा
परिचय
करवा
दिया
गया
था
उसके
बाद किसी अन्य आश्वस्ति
की आवश्यकता न थी . चन्द
मिनटों में मैं उनका अपना समान
हो गया . भीड़
थी . बड़े
बड़े लोग एक एक कर या समुह में
आ रहे थे , उनसे
मिल रहे थे ,अभिवादन
करने और महामना द्वारा अभिवादन
वापसी का क्रम चल रहा था.
बीच बीच में
महामना अत्यन्त आश्चर्य -जनक
ढंग से अत्यन्त गंभीर चिन्तन
, विवेचना
, मनन
की मनः स्थिति में भी लगातार
रहते थे. सार्वजनिक
जीवन का सांगो-पांग
पालन करते हुए भी वे लगातार
तीब्र चीन्तन -मनन-अध्ययन
में थे , यह
मैंने स्वयं देखा -समझा,
साक्षात्.
इसी
क्रम में थोड़ा सा समय मिला
.
उन्होंने
कुछ गूढ़ रहस्यमय स्वानुभूति
तथा उनका अन्वय-अर्थ-समाधान
मुझे कृपा -पूर्वक
बताया.मेरा
दुःसाहस देखिये- नासमझी
ही थी, जिद्दी
स्वभाव तो शुरू से ही था-
मैं महामना
से बहस कर बैठा, असहमत
हो चला.
शान्त
चित्त महामना, जरा
सा भी क्षोभ -विक्षोभ-खीझ
बैचैनी नहीं .
शान्ति
से मुझसे पूछा - तुम्हारी
यह सहमति क्यों .
मैंने
लगभग त्रक करते हुए कहा -
आपकी बात
समझ में नहीं आ रही.
पूछा
महामना ने - और
शैष बातें समझ में आ जाती है.
मैरा
जबाब था- लगभग
अहंकार के स्पष्ट पुट के साथ-
सारी तो
नहीं ही आती है , कुछ
आती है कुछ समझने की कोशिश
करता हूँ.
महामना-
कैसे समझते
हो
मैं
- सुन
, पढ़
,जान
,समझ
कर
महामना
- कैसे
जानते -समझते
हो
मैं
गर्व से - किताबें
पढ़ता हूँ
महामना-
किताबों
में क्या होता है
मै-
तथ्य
महामना
- कैसे
जाने की वही तथ्य है
मैं
निरुत्तर
महामना-
किताबों
मै लिखा सब तुमने मान लिया
मैं
लगभग सिर झुका चुका था
महामना-
किताबों
मे यदि गलत लिखा हो तो .
मैं
निरुत्तर
महामना-
किताबों
में लिखा कभी अपने से जाँचा,
परखा
महामना-
या बस लिखा
था सो पढ़ लिया और मान लिया
शर्म
से गड़ा मैं- बस
कुछ कुछ समझते हुए हिर झुकाये
जा रहा हूँ
इस
बीच दो चार आँसू भी आ चुके थे.
भीड़ भरा
माहौल था. महामना
से मिलने वालों का क्रम लगातार
चालू था
लगभग रात
के ग्यारह बज रहे थे.
आने
जाने वालों का क्रम टूट चला
था
महामना
लगभग पाँच घन्टे से मेरे साथ
थे, आदभुत
अनुभूति थी .
यह
समय मेरे जीवन का कैसा समय था
, नहीं
कह सकता. मैं
उनकी उपस्थिति मैं किस भाव
रस में था, नहीं
कह सकता.
परमात्मा
उन्हें शतायु करे , भारत
उनकी सेवा यथौचित रूप से प्राप्त
करे .
लगभग
साढ़े ग्यारह बजे ,लगभग
मध्य रात्री, महामना
ने समारोह स्थल से जाने की
इच्छा ब्यक्त की,मेजबान
ने अश्रुपूरित बिदाई दी.
महामना गाडी
पर बैठे. बाहर
चारों ओर देखा . मुझे
बुलाया गया. महामना
भावुक हो चले .पूछे
क्या चाहते हो . मैंने
ईतमिनान से जबाब दिया स्व-अर्जित
यश- श्रेय-वैभव-
प्रेरण एवं
शान्ति.
पूछा
महामन् ने - और
कुछ
मैंने बस
कहा कभी भी आपके साथ बिताये
इस समय को सार्वजनिक न करूँ,
इस लोभ में
न पडूँ, बस
इतनाही ,
फिर आपसे
मैं मिलने का उद्यम न करूँ,
बस इतना ही.
आपके मेजबान
का मेरे उपर
एसा ही भरोषा है.
महामना
ने कहा -
मेरा
भी (______)
उसपर
एसा ही भरोषा है,
मैं
समझ गया उसी वक्त जब (
) ने
तुम्हारा परिचय उन शब्दों के
साथ करवाया.
वह
अतिरिक्त शब्द न बोलता है न
लिखता है-
वह
लिखता है तो किताब ,
चलता
है तो यात्रा-
संकल्प-जुलुस
,
बैठ
जाये तो सभा-गोष्ठी
और बोल दे तो वचन
– वक्तब्य – वार्ता -
भाषण.
उसने
तुम्हारा (
महामना
ने कभी तुम कभी आप कहा था )
परिचय
करवाया है .
मैं
तो पूर्णतः आस्वस्त हूँ.
क्या
चाहते हो !
जी
हाँ ,
महामना
यह पूछने के अधिकारी थे
बस
यही की आप की याद परेशान न करे
,
मैं
उत्तेजित था
महामना
पर्याप्त वय के थे उस समय.शायद
तात्कालिक अस्वस्थता भी थी
.
महामना
गाड़ी से उतर ही गये.
चारों
ओर उन्हें विद् करने व्लों
की भीड़.
महामन्
ने आत्मीय सघन निर्लज्जता से
मेरा भरी भीड़ के सामने आलिंगन
किया.
उनकी
बाहों मै उस अवस्था में अस्वस्थता
की हालत में रात पौने बारह बजे
उतनी शक्ति थी .
मेरे
-
उनके
मेजबान के अतिरिक्त सभी अवाक्
फिर
गाड़ी में बैठने के क्रम में
फिर दुबारा बुलाया -
यदि
लिखे पर ही विश्वास
करते हो तो जो कुछ तुमसे आज
कहा
गया है वह सब जल्द ही पुस्तकाकार
छप
कर सार्वजनिक होगा ,
सब
लोग पढ़ सकेंगें ,
सारी
अच्छी लाइब्रेरी में मिलेगी
-
तब
पढ़ कर विश्वास कर लेना.
महामना
ने कहा-
तुम
पुस्तकों और आज तक कहा जो जा
चुका है उसके आगे सोचौ ,
उस
पर विश्वास
करो,
मैं
सदैव साथ हूँ
आविश्वसनीय,
आविआविश्वसनीय,
आविश्वसनीय,
आविश्वसनीय,
आविश्वसनीय,
श्वसनीय,
आविश्वसनीय,
आविश्वसनीय,
आविश्वसनीय,
आविश्वसनीय,
आविश्वसनीय,
आविश्वसनीय,
आविश्वसनीय,
आविश्वसनीय
आविश्वसनीय
आविश्वसनीय
आविश्वसनीय