इतिहास और परम्परा के नाम पर मुझे यथास्थितिवादियों के साथ खड़े रहने का शौक नहीं, मैं अकला ही सही।
पर विरूद के लोभ में मूझे तथाकथित प्रगतिशील दिखने की भी कोई चाहत नहीं, न मैं कथित प्रथम के रूप में जाना जाऊँ ,इसका आग्रह-
हाँ, परिवर्तन से मुझे स्वाभाविक लगाव है क्योंकि वह शाश्वत है, मैं स्वयं उसका अंग हूँ, वह मेरी-आपकी -सबकी नियति है-
अभिनन्दन है हर परिवर्तन का, नये नृत्य़-नर्तन का, अरूणआभ- किसलय का,नयी फसल के लिये जोते गये हर खेत का , हर सूखे बीज का जो नये वृक्ष ,नयी रचना के लिये कुछ काल में इतिहास हो जायेगा
और अभिनन्दन है नये के लिये जगह बनाने वाले हर पुरातन का- हमारे पुरखे थे तभी तो हम हैं और आगे भी होंगें
पर विरूद के लोभ में मूझे तथाकथित प्रगतिशील दिखने की भी कोई चाहत नहीं, न मैं कथित प्रथम के रूप में जाना जाऊँ ,इसका आग्रह-
हाँ, परिवर्तन से मुझे स्वाभाविक लगाव है क्योंकि वह शाश्वत है, मैं स्वयं उसका अंग हूँ, वह मेरी-आपकी -सबकी नियति है-
अभिनन्दन है हर परिवर्तन का, नये नृत्य़-नर्तन का, अरूणआभ- किसलय का,नयी फसल के लिये जोते गये हर खेत का , हर सूखे बीज का जो नये वृक्ष ,नयी रचना के लिये कुछ काल में इतिहास हो जायेगा
और अभिनन्दन है नये के लिये जगह बनाने वाले हर पुरातन का- हमारे पुरखे थे तभी तो हम हैं और आगे भी होंगें
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