"
न जाने कितनी बातियों की काया जली,
काला धुँआ अन्धेरे के साथ नाचता रहा
बाती को बचाने कोई भी नहीं आया,
तमाशबीन परवाने, आपस में लड़ मरे
...
रौशनी तो विरूद की भूखी, इतराती रही
अपनी तारीफ-अपने जलवे में मगन रही
अन्धैरे ने रौशनी को देखा, शरमा गया
दूर हटा,फिर दिये के सिरहाने बैठ गया
गर्म दिया, दो बूँद सनेह के लिये तरसा
जिसने दिया था सनेह, रौशनी ले उड़ा
रौशनी पतली हुई, अन्धेरा गहरा गया
सनेह चूका नहीं ,कि बाती राख बनी
बाती कि लिये अब कौन रोए और क्यूँ
रौशनी भी अठखैलियाँ करने लगी थी
काला धुँआ अन्धेरे के साथ नाचता रहा
बाती को बचाने कोई भी नहीं आया,
तमाशबीन परवाने, आपस में लड़ मरे
...
रौशनी तो विरूद की भूखी, इतराती रही
अपनी तारीफ-अपने जलवे में मगन रही
अन्धैरे ने रौशनी को देखा, शरमा गया
दूर हटा,फिर दिये के सिरहाने बैठ गया
गर्म दिया, दो बूँद सनेह के लिये तरसा
जिसने दिया था सनेह, रौशनी ले उड़ा
रौशनी पतली हुई, अन्धेरा गहरा गया
सनेह चूका नहीं ,कि बाती राख बनी
बाती कि लिये अब कौन रोए और क्यूँ
रौशनी भी अठखैलियाँ करने लगी थी
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