खानदानी
तिरछी चाल वालों को न कोइ मुश्किल होती है न कोइ उन पर सवाल उठाता
है,प्रशन केवल उन पर लगाये जाते है जो नीचे से अपनी मिहनत के बल पर आगे के
रास्तों पर बढ़ते हें और तब खानदानी तिरछे लोग कहना शुरु करते है, प्यादे
से फरज़ी भयो-------, जन्म जात फरजी तिरछा चले तो कोइ बात नहीं बनाता, पर
यदि अपने हुनर से कोइ नई राह तलाशे तो कहते हैं- नाच न आवै आँगन टेढ़ो और
इन सबके बाद भी यदि मेहनत ,धैर्य ,हुनर के सहारे कोइ आगे बढ़ ही जाये तो
फिर उसका श्रेय ले भी वही खानदानी तिरछा ही आगे आता है-- वाह रे दुहरे
मुल्यों की यह दुनिया-- रास्तं के सीधे तिरछे होने का भ्रम फलाते चलती है
No comments:
Post a Comment