कितने थे ,पूरी जिन्दगी बिकने के लिये दिन रात लिखते रहे ,बिके भी खूब पर उनका लिखना बंद ,बिकना बंद -फ़िक्र बंद ,जिक्र बंद -लगता है जैसे वे कभी थे ही नहीं -न उनका निशान - न उनके लिखे -पढ़े का का कोई स्थान .
फटाफट लिखा -फटाफट मिटा
खुद बिदा हुए तो लिखा -पढ़ा भी बिदा .
फटाफट लिखा -फटाफट मिटा
खुद बिदा हुए तो लिखा -पढ़ा भी बिदा .
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