Monday, 9 March 2015

कितने थे ,पूरी जिन्दगी बिकने के लिये दिन रात लिखते रहे ,बिके भी खूब पर उनका लिखना बंद  ,बिकना बंद -फ़िक्र बंद ,जिक्र बंद -लगता है जैसे वे कभी थे ही नहीं -न उनका निशान - न उनके लिखे -पढ़े का का कोई स्थान .
फटाफट लिखा -फटाफट मिटा
खुद बिदा हुए तो लिखा -पढ़ा भी बिदा .

No comments:

Post a Comment