कौन बताता है अपना चला ,किया ,भोगा !
किसे पड़ी है कि सब कुछ बताता चले , कहता चले !
हर शख्स छिपना ,छिपाना चाहता है ,न जाने क्यों .
कहने -बताने के लिये कलेजा चाहिये ,
भयंकर युद्ध में भी बताना ,कहना ,समझाना
यहीं नहीं रुकना ,सब कुछ खोल कर दिखाना
पर ऐसे कहने ,बताने ,समझाने वाले रहेंगें
हर देश काल ,समय ,परिस्थिति में
किसे पड़ी है कि सब कुछ बताता चले , कहता चले !
हर शख्स छिपना ,छिपाना चाहता है ,न जाने क्यों .
कहने -बताने के लिये कलेजा चाहिये ,
भयंकर युद्ध में भी बताना ,कहना ,समझाना
यहीं नहीं रुकना ,सब कुछ खोल कर दिखाना
पर ऐसे कहने ,बताने ,समझाने वाले रहेंगें
हर देश काल ,समय ,परिस्थिति में
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