धन्यवाद कहने का भी तो समय आ ही चला .किया सो सामने है . बस सुख चैन से चल-चला चल .इत्मिनान से चल-चला-चल . जो किया ,जितना किया वह सब बिना अहंकार के कर सका - जो बचा है वह बस इसी तरह कर सकूँ . अनावश्यक विवाद ,विध्वंश इर्ष्या को जन्म नहीं दूँ .
मैनें गुलाम नहीं बनाये .आपको आबाद किया या नहीं , यह तो पता नहीं पर आपको नुकसान न हो , आपके व्यक्तित्व , भविष्य की हानि न हो इतना सा प्रयास किया है .
आप सभी ने कुछ न कुछ तो दिया ही है ,अप्रतिम सहयोग तो दिया ही है .
चलिस साल से अधिक हुए ,चला , खूब चला .
यह सही है कि मैं ही नहीं चला . सभी को चलना पड़ता है .
पर चलने चलने में फर्क है .चला
कोई ढोल नगाडो के साथ चला ,नाचते घोरते चला ,इतराते -इठलाते चला . मौज मस्ती करते-कराते
चला बेफिक्र चला - आगे था ही ,और आगे ही चला .
एक हम ठहरे .कैसे चले क्या बतायें .बस अब लगता है की आखिर हम भी चल ही तो दिये ,हम भी तो चल ही तो गये - पर अब भी विश्वास नहीं होता अपना चला.
घरहट की घबराहट लगभग पैतालिस साल रही .बैचैन रहा था .पर उखड़ा नहीं . अपने आप को सम्भाले रखा - क्यों ,कैसे ,किस सहारे पता नहीं .
पता नही क्या याद रखे ,क्या भूल जाएँ पता नहीं क्या खोया ,क्या पाया . .
No comments:
Post a Comment