इसी आसमान से बरसी थी मौत और उतरा था वह खौफ
आज फिर उसी आसमान में एक नन्हा फाख्ता उड़ चला .
ये धरती , समन्दर , आसमां , कितने सपने निगल चुके
इन्हीं के साये में हंसता हुआ बचपन फिर सपना देखेगा
आज फिर उसी आसमान में एक नन्हा फाख्ता उड़ चला .
ये धरती , समन्दर , आसमां , कितने सपने निगल चुके
इन्हीं के साये में हंसता हुआ बचपन फिर सपना देखेगा
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