मनुष्य का आचरण और्व्यव्हार चैतन्य होता है .यह एक साथ सजीव ,चैतन्य ,ठोस ,द्रवीय तथा गैसीय ,आवेशीय ,सुप्त,सुसुप्त होता है .
मनुष्य का आचरण कम्पुटर के प्रोग्राम की तरह नहीं होता जहाँ सब कुछ पूर्व निर्धारित होता है .मनुष्य के आचरण में अनेक्संवेग एक साथ काम करते रहते हैं .प्रयत्न से ,अभ्यास से इन संवेगों कोअधोमुखी होने से बचाना ही मनुष्य का कर्तव्य है .बड़ों के सम्पर्क ,संसर्ग ,सत्संग , निर्देश से इन्हें उर्ध्वमुखी बनाया जा सकता है .इसमें प्रशिक्षण प्राप्त करना पड़ सकता है .जिस प्रकार कड़ी ऊँचाई पर चढना अथवा तेज ढलान पर उतरना एक कला है उसी प्रकार संवेगों के उफान ,चढव ,ढलान ,उतार पर उतरना चढना एक दुष्कर कला है .यहीं पर संयम का महत्व है यहीं पर ब्रेक काम आता है .संतुलन भी बनाना , बनाये रखना ,और नियंत्रण भी रखना.यहीं पर ब्रेक काम आता है .यदि अधर में ही तीब्र ढलान हो तो उस पर चलने की आवश्यक कला होनी ही चाहिए .ढलान को तोआप्बदल नहीं सकते .आधार तो आपके अनुरूप होगा नहीं .जिस आधार पर ढलान देख रहे हैं वही उसी ढलान के साथ निचे उतर जाने पर तीखी चढ़ाई दिखने लगेगा .
मनुष्य का आचरण कम्पुटर के प्रोग्राम की तरह नहीं होता जहाँ सब कुछ पूर्व निर्धारित होता है .मनुष्य के आचरण में अनेक्संवेग एक साथ काम करते रहते हैं .प्रयत्न से ,अभ्यास से इन संवेगों कोअधोमुखी होने से बचाना ही मनुष्य का कर्तव्य है .बड़ों के सम्पर्क ,संसर्ग ,सत्संग , निर्देश से इन्हें उर्ध्वमुखी बनाया जा सकता है .इसमें प्रशिक्षण प्राप्त करना पड़ सकता है .जिस प्रकार कड़ी ऊँचाई पर चढना अथवा तेज ढलान पर उतरना एक कला है उसी प्रकार संवेगों के उफान ,चढव ,ढलान ,उतार पर उतरना चढना एक दुष्कर कला है .यहीं पर संयम का महत्व है यहीं पर ब्रेक काम आता है .संतुलन भी बनाना , बनाये रखना ,और नियंत्रण भी रखना.यहीं पर ब्रेक काम आता है .यदि अधर में ही तीब्र ढलान हो तो उस पर चलने की आवश्यक कला होनी ही चाहिए .ढलान को तोआप्बदल नहीं सकते .आधार तो आपके अनुरूप होगा नहीं .जिस आधार पर ढलान देख रहे हैं वही उसी ढलान के साथ निचे उतर जाने पर तीखी चढ़ाई दिखने लगेगा .
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