पहले भी यह बात थी और आज भी यह पाता हूँ कि मनुष्य का जीवन एक अनुभव भर ही है .एक यत्र ही है .कोई नहीं जानता अगला अनुभव क्या होगा और यात्राका पड़ाव कहाँ है और यात्रा कब,कैसे समाप्त हो जायेगी .
चाँद साल की यात्रा मैं धीरे धीरे यह समझ में आने लगा कि समय अनुभव देता है . यही समय बाद मे पहले के अनुभवों की ब्याख्या भी करता है . समय के साथ साथ एक ही अनुभव की ब्याख्याएँ भी बदल जाती है ..
ऐसा नहीं होता कि एक समय में जो अनुभव हुए हैं उनकी बदलती ब्याख्याएँ एक दूसरेको काटती है .ऐसा नहीं है की दो भिन्न ब्याख्याएँ एकदूसरे को काटती सी दिखने के बाद भी गलत होती हैं .सच तो यह है कि प्रत्येक ब्याख्या अपने आप में सही होती है .समय ,काल और परिस्थिति सापेक्ष होती है .यही ब्याख्या समय ,काल और परिस्थिति आदि बदलने पर स्वयं बदल जाती है .कई बार ब्याख्याएँ इस लिये भी बदल जाती है की कोई सतही ब्याख्या होती है कोई सूक्ष्म ,तो कोई गहन-गंभीर ब्याख्या .एक ही अनुभव की ब्याख्या या एक ही अनुभव से प्राप्त निष्कर्ष सधानोंके बदल जाने से भी बदल जाती है .
एक ही प्रश्न होता है ,अकेले बठे उसका उत्तर ही नहीं सूझ रहा , एक साथी कोस्ट लिया तो कुछ बना ,कुछ नहीं बना-अनसुलझा हिरः ,साथी बदला ,साथ बदला तो प्रश्न तो बन गया पर समझ में कुछ भी नहीं आया , फिर तीसरे के पास बैठे तो बस प्रश्न भर ही समझ में आया .किसी समर्थ्के पास बैठ गये ,त प्रश्न के साथ ही उसके आगे पीछे के कई रहस्य खुलते चले गये. अभी और बाकी है .यदि उस समर्थ की मौज आ गई तो कोई भेद अनजाना नहीं रह गया .बिना पधेभी अपने आप पढ़ गया .अनसमझा भी अपने आप प्रत्यक्ष हो गया.सब कुछ सामने आ गया .जो न था वह सब सामने आ गया . जो था वह सब गायब .इसी सब के कारण एक ही अनुभव के अनेक यथार्थ होते हैं .
मेरा अपना जीवन भी इसी प्रकार एक ही अनुभव की अनेक ब्याख्याओं से भरा पड़ा है .
इस शारीर को छोड़ने के पहले मैं कोशिश करूँगा कि अपने जीवन के यथार्थ अनुभवों को पूरी तरह सचसच लिख कह डालूं .,लिख डालूं ,बतादलूं ताकि अंत में मुझे अफ़सोस नहीं होकी मैनें कुछ छिपाया है .
चाँद साल की यात्रा मैं धीरे धीरे यह समझ में आने लगा कि समय अनुभव देता है . यही समय बाद मे पहले के अनुभवों की ब्याख्या भी करता है . समय के साथ साथ एक ही अनुभव की ब्याख्याएँ भी बदल जाती है ..
ऐसा नहीं होता कि एक समय में जो अनुभव हुए हैं उनकी बदलती ब्याख्याएँ एक दूसरेको काटती है .ऐसा नहीं है की दो भिन्न ब्याख्याएँ एकदूसरे को काटती सी दिखने के बाद भी गलत होती हैं .सच तो यह है कि प्रत्येक ब्याख्या अपने आप में सही होती है .समय ,काल और परिस्थिति सापेक्ष होती है .यही ब्याख्या समय ,काल और परिस्थिति आदि बदलने पर स्वयं बदल जाती है .कई बार ब्याख्याएँ इस लिये भी बदल जाती है की कोई सतही ब्याख्या होती है कोई सूक्ष्म ,तो कोई गहन-गंभीर ब्याख्या .एक ही अनुभव की ब्याख्या या एक ही अनुभव से प्राप्त निष्कर्ष सधानोंके बदल जाने से भी बदल जाती है .
एक ही प्रश्न होता है ,अकेले बठे उसका उत्तर ही नहीं सूझ रहा , एक साथी कोस्ट लिया तो कुछ बना ,कुछ नहीं बना-अनसुलझा हिरः ,साथी बदला ,साथ बदला तो प्रश्न तो बन गया पर समझ में कुछ भी नहीं आया , फिर तीसरे के पास बैठे तो बस प्रश्न भर ही समझ में आया .किसी समर्थ्के पास बैठ गये ,त प्रश्न के साथ ही उसके आगे पीछे के कई रहस्य खुलते चले गये. अभी और बाकी है .यदि उस समर्थ की मौज आ गई तो कोई भेद अनजाना नहीं रह गया .बिना पधेभी अपने आप पढ़ गया .अनसमझा भी अपने आप प्रत्यक्ष हो गया.सब कुछ सामने आ गया .जो न था वह सब सामने आ गया . जो था वह सब गायब .इसी सब के कारण एक ही अनुभव के अनेक यथार्थ होते हैं .
मेरा अपना जीवन भी इसी प्रकार एक ही अनुभव की अनेक ब्याख्याओं से भरा पड़ा है .
इस शारीर को छोड़ने के पहले मैं कोशिश करूँगा कि अपने जीवन के यथार्थ अनुभवों को पूरी तरह सचसच लिख कह डालूं .,लिख डालूं ,बतादलूं ताकि अंत में मुझे अफ़सोस नहीं होकी मैनें कुछ छिपाया है .
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