Sunday, 30 June 2013

किताबों ने अब बाहर निकलना बंद कर दिया,
शब्दकोशों नें सीटी बजाना भी बंद कर लिया,।

शायरी और कविता ने जब से अर्थ खो दिया
उपन्यास अनर्थ ,कथा-कथ्य व्यर्थ हो लिया।

छन्द आवारा हुए,अलंकारों के आकार शेष
शब्द चुप, वाक्य लुप्त ,सबने धरा छद्म-वेश।

कोलाहल संगीत बना ,बिन शब्दों के गीत

बिन मात्रा भाषा रही, बिन रस रहे कवीत।

प्रीत बिना मीत रहे,,बिन मर्यादा रहे जीत
अनर्थ ही अब अर्थ रहे,ऐसी बही है रीत।

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