किताबों ने अब बाहर निकलना बंद कर दिया,
शब्दकोशों नें सीटी बजाना भी बंद कर लिया,।
शायरी और कविता ने जब से अर्थ खो दिया
उपन्यास अनर्थ ,कथा-कथ्य व्यर्थ हो लिया।
छन्द आवारा हुए,अलंकारों के आकार शेष
शब्द चुप, वाक्य लुप्त ,सबने धरा छद्म-वेश।
कोलाहल संगीत बना ,बिन शब्दों के गीत
बिन मात्रा भाषा रही, बिन रस रहे कवीत।
प्रीत बिना मीत रहे,,बिन मर्यादा रहे जीत
अनर्थ ही अब अर्थ रहे,ऐसी बही है रीत।
शब्दकोशों नें सीटी बजाना भी बंद कर लिया,।
शायरी और कविता ने जब से अर्थ खो दिया
उपन्यास अनर्थ ,कथा-कथ्य व्यर्थ हो लिया।
छन्द आवारा हुए,अलंकारों के आकार शेष
शब्द चुप, वाक्य लुप्त ,सबने धरा छद्म-वेश।
कोलाहल संगीत बना ,बिन शब्दों के गीत
बिन मात्रा भाषा रही, बिन रस रहे कवीत।
प्रीत बिना मीत रहे,,बिन मर्यादा रहे जीत
अनर्थ ही अब अर्थ रहे,ऐसी बही है रीत।
No comments:
Post a Comment