Wednesday, 12 June 2013

धन जिसके पास है, उसे भय तथा जिसके पास नहीं हे उसे इर्ष्या देता है, धन लोभ की आवृत्ति तीब्र करता हे, सुरक्षा में भी संशय पैदा करता है। धन उत्तराधिकार में दिया जा सकता है पर इसके साथ साथ भय,इर्ष्या , संशय भी ट्रानसफर हो जाते हैं।
धन की उत्पत्ति का श्रोत अनैतिक,अनुचित भी हुआ करता है।

यश के साथ ये दुविधाएँ नहीं है।
धर्म के साथ तो एकदम नहीं।
यश या धर्म सत्कर्म-साध्य है।

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