Friday, 16 December 2022

Thursday, 8 December 2022

 दिल्ली के बाहर भी एक भारत बसता है। हमें उसके बारे में जानना होगा। उन्होंने कहा जिला अदालतों (District Courts) पर हमें ध्यान देना होगा। कहा कि न्याय के अधिकार (Right To Justice) को साकार करने में एक महत्वपूर्ण घटक (Components) यह सुनिश्चित करना है कि पूरा न्यायिक इंफ्रास्ट्रक्चर (Judicial Infrastructure) हो, जो जिला स्तरीय अदालतों (District Level Courts) से शुरू होगा।

कहा- औपनिवेशिक काल में इमारतों का वास्तुशिल्प डर पैदा करने के लिए बनाए गये थे

Tuesday, 6 December 2022

 वैसे अपने लिये आगे के मार्ग पर आगे बढ़ने , स्वविवेक से स्वाध्याय , स्व-विवेचन , स्वकीय -प्रज्ञा , अंतर्ज्ञान के आधार पर कभी कोई रोक नहीं है।

आगे की यात्रा में भी उनके अनुभव -प्रकाश का अवलम्ब लिया ही जा सकता है।

हाँ सावधानी जरूरी है, अतिरेक -ब्यसन-अतिरंजना - विष्फोटक उद्वेग से बचते आगे बढ़ना चाहिए - रास्ते में मिले अनुभवों -प्राप्त निष्कर्षों का सावधानी से विवेचन ही और आगे प्रखरता से बढ़ने का मार्ग है - प्रमाणित -परखा सिद्ध -अनुभूत मार्ग !!!

Sunday, 4 December 2022

 

स्वरचित नहीं है,  उद्धृत है। 

🧍ल ल ल लड़के 😊


🚶 लड़के ! हमेशा खड़े रहे...

खड़े रहना उनकी मजबूरी नहीं रही बस !

उन्हें कहा गया हर बार,

चलो तुम तो लड़के हो 

खड़े हो जाओ.😁


✒️छोटी-छोटी बातों पर वे खड़े रहे ,

कक्षा के बाहर.. स्कूल विदाई पर😁


📸 जब ली गई ग्रुप फोटो, लड़कियाँ हमेशा आगे बैठीं, और लड़के बगल में हाथ दिए पीछे खड़े रहे.

वे तस्वीरों में आज तक खड़े हैं..😁


🎙️कॉलेज के बाहर खड़े होकर, 

करते रहे किसी लड़की का इंतज़ार,

या किसी घर के बाहर घंटों खड़े रहे,

एक झलक, एक हाँ के लिए. 

अपने आपको आधा छोड़ वे आज भी 

वहीं रह गए हैं...😁


🏡बहन-बेटी की शादी में खड़े रहे,

मंडप के बाहर बारात का स्वागत करने के लिए.

खड़े रहे रात भर हलवाई के पास,

कभी भाजी में कोई कमी ना रहे.

खड़े रहे खाने की स्टाल के साथ,

कोई स्वाद कहीं खत्म न हो जाए.😁


🎈खड़े रहे विदाई तक 

दरवाजे के सहारे और टैंट के 

अंतिम पाईप के उखड़ जाने तक.

बेटियाँ-बहनें जब तक वापिस लौटेंगी

वे खड़े ही मिलेंगे...

वे खड़े रहे पत्नी को सीट पर बैठाकर,

बस या ट्रेन की खिड़की थाम कर वे खड़े रहे😁 


🏋️बहन के साथ घर के काम में,

कोई भारी सामान थामकर.

वे खड़े रहे 😁


🛐माँ के ऑपरेशन के समय

ओ. टी.के बाहर घंटों. वे खड़े रहे 👌


🔥पिता की मौत पर अंतिम लकड़ी के जल जाने तक. वे खड़े रहे ,

अस्थियाँ बहाते हुए गंगा के बर्फ से पानी में.👌


🙋लड़कों ! रीढ़ तो तुम्हारी पीठ में भी है,

क्या यह अकड़ती नहीं.....?🤩

🎧 सभी लड़कों को समर्पित 🚩

 https://byjus.com/free-ias-prep/industrial-disputes-act/

 https://www.yourarticlelibrary.com/industries/industrial-disputes/essay-on-industrial-disputes-meaning-causes-and-settlement/90555

Friday, 25 November 2022

 घर में बीवी डांटे फटकारे या उठाके आपको पटके 

दिल टूट गया प्यार छूट गया 

तो निराश ना हो आज हीं Join करें 🏃🏃

Facebook पर हमारे मारवाड़ी पंचायत Group ko.....


यहां आकर आपके मन को अपार शांति मिलेगी।

यहां अनुभवी, महाज्ञानी, महामंडलेश्वर, कुचमादेश्वर, दिव्य ज्ञानी, हास्य-व्यंग्य शिरोमणि, कुचरणीबाज, और प्रकांड विद्वानों का साथ मिलेगा।

 जीवन में आनन्द मंगल की अनुभूति होगी टेंशन आपसे कोसों दूर भागेगा।

विशेष बात यह है कि यहां आपके कई अनसुलझे सवालों का जवाब बिना पूछे ही किसी ना किसी पोस्ट या कमेंट में मिलते जाएंगे।

हंसते रहो हंसाते रहो यही तो खासियत है अपनी पंचायत की।

जय पंचायत - जय पंचायती

Thursday, 17 November 2022

 *सोचने समझने वाली बात*

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*हर दूसरी पोस्ट आफताब को कौस रही है, आफताब कहां गलत है? उसने वही किया जो उसे करना था। गलती किसकी है? 


आप लोगों को कमाने से फुर्सत नहीं है, 

औरतों को किट्टी पार्टियों से फुर्सत नही,

साथ बैठकर खाना खाने बात करने का समय नहीं है, 

बच्चे ट्यूशन जा रहे हैं वो देखने का समय नहीं है।


कई कई मां बाप को तो पता ही नहीं होता बेटे के चेहरे पर मुंछें उग आई हैं। फीस जमा कराई और हो गया कर्तव्य पूरा। परिवार में पिता का खौफ तो कब का खत्म हो गया। संयुक्त परिवारों में एक अलग व्यवस्था रहती थी। 


शराब आम बात हो गई है और माएं खुद बेटियों को अबोर्शन के लिए ले जा रही हैं। जिम और ब्यूटी पार्लर सॉफ्ट टारगेट गेनर हैं। 


आज करोड़ों के बंगले हैं मगर खोखले हैं। इसलिए अपनी मानसिक और शारीरिक कमियों को ढंकने के लिए दूसरे को कोसना बंद कीजिए। ये हमारे ही मुंह तक थूकने जैसा है। 


हम एक दूसरे से मिलना जुलना पसंद नहीं करते। मेहमान आफत लगते हैं, अभी दिवाली गई कितने लोग अपने बच्चों को रामा श्यामा करवाने ले गए, बड़े बुजुर्गो को धोक दिलवाने ले गए। 


पग पग पर खतरा है, गिद्ध है। जब कभी समय मिले अजमेर मेयो कॉलेज कांड याद कर लेना जिसमें लड़कियां ही नहीं उनकी भाभियां तक फंस गई थी मगर नहीं आपको तो शादी ब्याह में उड़ाने से फुरसत नहीं। 


हां, पेट्रोल टमाटर पर जरूर चिंतित होते है...*

.

 आज कोई मर्द किसी लडकी को 

अपने घर या बाहर किसी फ़्लैट में रखकर,

साथ रहता है, भोगता है, 

तो लोग उसे 

नए terminology में, 

या यूं कहें कि 

Refined words में 

"Live in relationship" में रहना 

कहते हैं !

भले ही वो मर्द या लड़की

पहले से शादी शुदा हो या कुंवारा हो !!


पहले इस व्यवस्था में 

लड़की को "रखैल" कहा जाता था ?


आजकल भारत में रखैलों की संख्या

बढ़ती जा रही है ?

.

.

Monday, 14 November 2022

 Parliament को Constitution मे amend करना चाहिए। य़ह अंग्रेजियत की गन्ध है। डिस्ट्रिक्ट मे देशी जज होते थे, High Court आदि मे इंपोर्टेड बिलायती जज। वे देशी जजों को घटिया, दोयम दर्जे के जज समझते थे। उनके प्रभाव से उनके कोर्ट मे वकालत के लिये उपस्थित वकील भी अलग हाव भाव में रंगने लगे, साहबों की तरह व्यवहार करने लगे और जिला स्तर के वकीलों से दूरी बनाने लगे। एक वकील का हाइकोर्ट में प्रेक्टिस करना एक विशेष आभुषण हो गया और जिला न्यायालय के अधिवक्ता अलग होते चले गये। भारत की 99% जनता जिला स्तरीय वकीलों से जिला स्तरीय न्यायाधीशों से ही न्याय पाती है पर जब उन्हें पता चलता है कि उनको न्याय देने वाला Subordinate है तो अंदर ही अंदर उनको निराशा क्षोभ तो होता ही है। पार्लियामेंट को इस गुलामी की निशानी को तत्काल हटाना चाहिये।

Tuesday, 18 October 2022

 ज्ञान गंगा शैक्षणिक परिवार,  दाऊद नगर के संरक्षक के रूप में मैं स्वयं पर एक नई जिम्मेदारी को अनुभव कर रहा हूँ। 

इस परिवार ने मुझे य़ह दायित्व दे मेरे उपर बड़ा उपकार किया है,  ऐसा मेरा मानना है। 

पूरे परिवार का मुखिया होने का सम्मान मुझे लघुता से भर देता है और भविष्य की जिम्मेदारी के प्रति सचेत करता है 

परिवार के प्रत्येक सदस्य विशेष अभिनंदन के अधिकारी है क्यों कि विधाता ने इनके माध्यम से भविष्य निर्माण का संकल्प लिया है। परिवार का प्रत्येक सदस्य राष्ट्रीय भविष्य में अपना योगदान देने के लिये विधि द्वारा चयनित है।  आइए हम सभी इस महती दायित्व का आनंद लें और खुद को इसके लिये तैयार करें,  समर्पित करें। 

इस परिवार से जुड़े हर अभिभावक,  शिशु,  किशोर,  युवा,  वृद्ध जो चाहे किसी भी रूप में परिवार को छाया देता हो,  या इसकी छाया में खेल कूद रहा हो,  लिख पढ़ रहा हो,  विश्राम कर रहा हो अथवा इस परिवार से निकला किसी अन्य परिवार में,  समाज में पुनर्स्थापित हो गया हो,  या होने को सचेष्ट हो को मैं एक बात के लिये आश्वस्त करना चाहूँगा कि वे सभी दी गई परिस्थितियों के सापेक्ष सम्भव सर्वश्रेष्ठ के अधिकारी है और परिवार इस सर्वश्रेष्ठ के लिये वचनबद्ध है,  निरन्तर प्रयासरत है। 

परिवार के काम को दिशा निर्देशन से जुड़े सभी वरिष्ठ से मेरी अपेक्षा रहेगी कि वे किसी एक को भी कुंठा का शिकार न होने दें। 

लाइब्रेरी,  खेलकूद,  वाद विवाद,  प्रतियोगिता,  कम्प्यूटर,  हार्डवेयर,  सॉफ्टवेयर,  वैज्ञानिक,  तकनीक उपकरण,  हमारे परम्परागत उपकरण,  हमारी परंपरा और परम्परागत जीवन  व कृषि शैली का हमारे जीवन में बहुत महत्त्व है।  आइये इन कतिपय सूत्रों को कस कर पकड़े और इनसे अपने पूर्वजों बडों को याद करते,  उनसे प्रेरणा लेते सारे परिवार को एक स्वर्णिम भविष्य की ओर ले चलें।

इतिहास से मोह या बँध नहीं,  वर्तमान ही अंत नहीं,  हमे इतिहास को समृद्ध करना है,  वर्तमान का आनंद लेते हुए भविष्य का निर्माण करना है। 

जय परिवार।  जय समाज।  जय भविष्य की यात्रा के सभी सहयात्री।  अभी अभी परिवार प्रांगण में आये सभी का स्वागत,  वरिष्ठों को आदर,  सहयोगी सभी को प्रेम। 

Monday, 5 September 2022

 लड़कियों के नसीब में अच्छे टीचर्स की गिनती लड़कों के मुक़ाबले बहुत कम होती है । ज़्यादातर टीचर्स क्लास में लार टपकाते ही आते थे । लड़कियों की साइड घूमते टहलते आ जाना और बहाने बहाने से उन्हें छूना या बड़ी लड़कियों को बाँह से पकड़ना,पीठ पर हाथ मारना और गुटका खाई बत्तीसी निकाल कर अपनी फूहड़ अश्लील हरकतों पर खी खी करना । लड़कों का मुँह दबाकर हँसना और लड़कियों का शर्म से गड़ जाना । लड़कियों का घर में शिकायत करने का मतलब घर बैठो। स्कूल में जेंट्स टीचर्स के बीच न लड़कियों की शिकायत करने की हिम्मत थी । अगर शिकायत की जाती तो सुनवाई की उम्मीद भी नहीं थीं । इस पर हम छोटी लड़कियाँ ख़ैर मनाते कि ठरकी टीचर्स एक,दो बड़ी लड़कियों में ही उलझे रहते हैं हम तक नहीं पहुँचते । वो लड़कियाँ कई-कई दिन स्कूल नहीं आती दिन ब दिन पढ़ाई में कमज़ोर होती गयीं ।

वो लड़कियाँ किस कदर तकलीफ़ और शर्म से गुजरती थी इसका अहसास था लेकिन घरों से बोलने की हिम्मत नहीं दी जाती। इस तरह की बातों पर तो बिल्कुल भी नहीं । सारी मिसालें औरतों,लड़कियों के सब्र,बर्दाश्त की दी जाती यूँ भी ग़लती किसी की भी हो बदनामी लड़कियों की हो होती है,इसलिये हर हाल में चुप रहो ।


काश टीचर्स डे पर ऐसे फटीचरों को जूतों से मारने का नियम होता ।

Friday, 26 August 2022

 बेगूसराय में काम कर रहा था।  

एक दबंग वकील साहब थे।  कोर्ट पर हावी होने और तीखा बोलने,  डराने के लिये जाने जाते थे। 

मैं उनको कोर्ट रूम में घुसते ही उनका नाम लेकर पूछता  कि बताइए वकील साहब आप किस केस में है।  कभी कभी किसी सुनवाई को बीच में रोक कर पहले उनकी फाइल निपटा देता था।  मेरा एक फाँसी का फैसला इन्हीं की संदेह उपस्थिति मे izlash  पर ही डिक्टेट किया गया था। 

एक दिन एक बड़े वकील ने हस्तक्षेप किया  : उनको पहले क्यों सुना जाता है?

मैंने कहा  : आप भी (          बाबू  ) बन जाएं,  वही ख्याति अर्जित कर ले,  मैं आपको भी पहले सुन लूँगा। 

वकील साहब पस्त  : दोनों हाथ जोड़कर  बोले,  नहीं नहीं,  मुझे नहीं बनना, आप उन्हीं को पहले सुनिए। 

मैंने कहा  : उनको पहले सुनता हूँ ताकि बाकी सुनवाई सुचारू चल सके,  कोर्ट में काम  हो।

 मैं पटना में  न्यायाधीश था।  अक्सर एक वकील साहब आते,  कोर्ट में घुसते ही चिल्लाने लगते।  कल तो सुप्रीम कोर्ट में बहस कर के आया हूँ,  आज शाम की फ्लाईट से फिर जाना है,  मेरी बहस पहले सुन ली जाये,  और यदि बहस सुन ली गई,  जो शायद interlocutory मैटर पर mentioning ही अधिक होती थी तो न्यायाधीश को धमक के साथ बोलते थे आज और अभी आदेश डिक्टेट करें नहीं तो अभी सीधे PHC के जजों के पास प्रार्थना  करूँगा।  आखिर मैं Supreme Court तक जाने वाला वकील हूँ।  खूब गरजता हुआ  वकील।  उनके दो जवान पुत्र 376 के केस में फंस गए।  उनके मैटर भी मेरे यहाँ ट्रांसफर होते थे। 24 साल पहले की बात है।

कभी किसी ने उनको गम्भीरता से नहीं लिया। 

उनके साथी वकील चाहते थे,  उनको जैसे ही कोर्ट में घुसे,  निपटा दिये जायें ताकि गम्भीर न्यायिक कार्य चल सके।

 "मैं उस माटी का वृक्ष नहीं,

जिसको नदियों ने सींचा है ।

बंजर माटी में पलकर मैंने,

मृत्यु से जीवन खिंचा है ।।


मैं पत्थर पर लिखी इबारत हूं,

शीशे से कबतक तोड़ोगे...?

मिटने वाला मैं नाम नहीं,

तुम मुझको कबतक रोकोगे...!"

Wednesday, 3 August 2022

 एक लड़का जब 20 साल का हुआ तो उसके पिता ने उसे एक पुराना कपड़ा देकर उसकी कीमत पूछी।


लड़का बोला 100 रु। तो पिता ने कहा कि इसे बेचकर दो सौ रु लेकर आओ। लड़के ने उस कपड़े को अच्छे से साफ़ कर धोया और अच्छे से उस कपड़े को फोल्ड लगाकर रख दिया।अगले दिन उसे लेकर वह रेलवे स्टेशन गया,जहां कई घंटों की मेहनत के बाद वह कपड़ा दो सौ रु में बिका।


कुछ दिन बाद उसके पिता ने उसे वैसा ही दूसरा कपड़ा दिया और उसे 500 रु में बेचने को कहा।


इस बार लड़के ने अपने एक पेंटर दोस्त की मदद से उस कपड़े पर सुन्दर चित्र बना कर रंगवा दिया और एक गुलज़ार बाजार में बेचने के लिए पहुंच गया।एक व्यक्ति ने वह कपड़ा 500 रु में खरीदा और उसे 100 रु इनाम भी दिया।


जब लड़का वापस आया तो उसके पिता ने फिर एक कपड़ा हाथ में दे दिया और उसे दो हज़ार रु में बेचने को कहा। इस बार लड़के को पता था कि इस कपड़े की इतनी ज्यादा कीमत कैसे मिल सकती है । उसके शहर में मूवी की शूटिंग के लिए एक नामी कलाकार आई थीं।लड़का उस कलाकार के पास पहुंचा और उसी कपड़े पर उनके ऑटोग्राफ ले लिए।


ऑटोग्राफ लेने के बाद लड़के ने उसी कपड़े की बोली लगाई। बोली दो हज़ार से शुरू हुई और एक व्यापारी ने वह कपड़ा 12000 रु में ले लिया


रकम लेकर जब लड़का घर पहुंचा तो खुशी से पिता की आंखों में आंसू आ गए। उन्होंने बेटे से पूछा कि इतने दिनों से कपड़े बेचते हुए तुमने क्या सीखा?


लड़का बोला -"पहले खुद को समझो,खुद को पहचानो। फिर पूरी लगन से मन्ज़िल की और बढ़ो,क्योकि जहां चाह होती है,राह अपने आप निकल आती है।"


पिता बोले कि तुम बिलकुल सही हो,मगर मेरा ध्येय तुमको यह समझाना था कि


"कपड़ा मैला होने पर इसकी कीमत बढ़ाने के लिए उसे धो कर साफ़ करना पड़ा,फिर और ज्यादा कीमत मिली जब उस पर एक पेंटर ने उसे अच्छे से रंग दिया और उससे भी ज्यादा कीमत मिली जब एक नामी कलाकार ने उस पर अपने नाम की मोहर लगा दी।"


कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है कि..............


"संघर्ष ही जीवन है।ऐसे ही छोटे-छोटे कदमों से चलते हुए रास्ते की बाधाएं साहस और सूझबूझ से सुलझाओगे तो मंजिल बड़े प्यार से तुम्हारा स्वागत करेगी।


कुसंग से बचते हुए लक्ष्य पर ध्यान एकाग्र करो।अपने परम हितैषी पिता की सलाह को मानो और ईश्वर की कृपा का भी सहारा लो,सफलता तुम्हारे कदम अवश्य चूमेगी।"

Thursday, 28 July 2022

 मैं अपने पिता के साथ, सोफे पर कभी नहीं बैठा था  I अपने विवाह के बाद तो मैं उनसे अलग ही रह रहा था I 


अपने विवाह के बाद, बहुत साल पहले, एक गर्म उमस भरे दिन, मैं अपने घर उनके आगमन पर, उनके साथ सोफे पर बैठा, बर्फ जैसा ठंडा जूस सुड़क रहा रहा था I 


जब मैं अपने पिता से, विवाह के बाद की व्यस्क जिंदगी, जिम्मेदारियों और उम्मीदों के बारे में अपने ख़यालात का इज़हार कर रहा था, तब वह अपने गिलास में पड़े बर्फ के टुकड़ों को स्ट्रा से इधर उधर नचाते हुए, बहुत गंभीर और शालीन खामोशी से मुझे सुनते जा रहे थे I        


अचानक उन्होंने कहा, "अपने दोस्तों को कभी मत भूलना !" उन्होंने सलाह दी, " तुम्हारे दोस्त उम्र के ढलने पर पर तुम्हारे लिए और भी महत्वपूर्ण और ज़रूरी हो जायेंगे I" 


"बेशक अपने बच्चों, बच्चों के बच्चों और उन सभी के जान से भी ज़्यादा प्यारे परिवारों को रत्ती भर भी कम प्यार मत देना, मगर अपने पुराने, निस्वार्थ और सदा साथ निभानेवाले दोस्तों को हरगिज़ मत भुलाना I वक्त निकाल कर, उनके  साथ समय ज़रूर बिताना I मौज मस्ती करना I उनके घर खाना खाने जाना और जब मौक़ा मिले उनको अपने घर बुलाना I कुछ ना हो सके तो फोन पर ही जब तब, हाल चाल पूछ लिया करना I"      


"क्या बेतुकी, विचित्र और अटपटी सलाह हैI" मैंने मन ही मन सोचा I 


मैं नए नए विवाहित जीवन की खुमारी में था और बुढऊ मुझे यारी-दोस्ती के फलसफे समझा रहे थे I 


मैंने सोचा, "क्या जूस में भी नशा होता है, जो ये बिन पिए बहकी बहकी बातें करने लगे? आखिर मैं अब बड़ा हो चुका हूँ, मेरी पत्नी और मेरा होने वाला परिवार मेरे लिए जीवन का मकसद और सब कुछ है I दोस्तों का क्या मैं अचार डालूँगा?" 

      

लेकिन मैंने आगे चल कर, एक सीमा तक उनकी बात माननी जारी रखी I मैं अपने गिने-चुने दोस्तों के संपर्क में लगातार रहा I संयोगवश समय बीतने के साथ उनकी संख्या भी बढ़ती ही रही I 


कुछ वक्त बाद मुझे अहसास हुआ कि उस दिन मेरे पिता 'जूस के नशे' में नहीं उम्र के खरे तजुर्बे से मुझे समझा रहे थेI  उनको मालूम था कि उम्र के आख़िरी दौर तक ज़िन्दगी क्या और कैसे करवट बदलती हैI       


हकीकत में ज़िन्दगी के बड़े से बड़े तूफानों में दोस्त कभी मल्लाह बनकर, कभी नाव बन कर साथ निभाते हैं और कभी पतवार बन कर I कभी वह आपके साथ ही ज़िन्दगी की जंग में, कूद पड़ते हैं I 


सच्चे दोस्तों का काम एक ही होता है- दोस्ती I उनका मजहब भी एक ही होता है- दोस्ती I उनका मकसद भी एक ही होता है- दोस्ती !    


ज़िन्दगी के पचपन साल बीत जाने के बाद मुझे पता चलने लगा कि घड़ी की सुइंयाँ पूरा चक्कर लगा कर वहीं पहुँच गयीं थी, जहाँ से मैंने जिंदगी शुरू की थी I 


विवाह होने से पहले मेरे पास सिर्फ दोस्त थेI विवाह के बाद बच्चे हुए I बच्चे बड़े हुएI उनकी जिम्मेदारियां निभाते निभाते मैं बूढा हो गयाI बच्चों के विवाह हो गएI उनके कारोबार चालू हो गए I अलग परिवार और घर बन गएI बेटियाँ अपनी जिम्मेदारियों में व्यस्त हो गयीं I बेटे बेटियों के बच्चे कुछ समय तक दादा-दादी और नाना-नानी के खिलौने रहेI उसके बाद उनकी रुचियाँ मित्र मंडलियाँ और जिंदगी अलग पटरी पर चलने लगींI  

            

अपने घर में मैं और मेरी पत्नी ही रह गए I  


वक्त बीतता रहा I नौकरी का भी अंत आ गया I साथी-सहयोगी और प्रतिद्वंद्वी मुझे बहुत जल्दी भूल गएI 


जिन रेलवे अधिकारियों से मैं पहले कभी छुट्टी मांगने जाता था, तो जो आदमी  मेरी मौजूदगी को रेलवे के लिए  जीने-मरने का सवाल बताते थे, वह मुझे यूं भूल गये जैसे मैं कभी वहाँ काम करता ही नहीं थाI 


एक चीज़ कभी नहीं बदली, मेरे मुठ्ठी भर पुराने दोस्त I मेरी दोस्तियाँ ना तो कभी बूढ़ी हुईं, ना रिटायर I 


आज भी जब मैं अपने दोस्तों के साथ होता हूँ, लगता है अभी तो मैं जवान हूँ और मुझे अभी बहुत से साल ज़िंदा रहना चाहिए I      


सच्चे दोस्त जिन्दगी की ज़रुरत हैं, कम ही सही कुछ दोस्तों का साथ हमेशा रखिये, साले कितने भी अटपटे, गैरजिम्मेदार, बेहूदे और कम अक्ल क्यों ना हों, ज़िन्दगी के बेहद खराब वक्त में उनसे बड़ा योद्धा और चिकित्सक मिलना नामुमकिन हैI  


अच्छा दोस्त दूर हो चाहे पास हो, आपके दिल में धडकता है I 


सच्चे दोस्त उम्र भर साथ रखिये I जिम्मेदारियां निभाइए I 


लेकिन हर कीमत पर यारियां बचाइये I उनको सलामत रखियेI 


ये बचत उम्र भर आपके काम आयेगी I


सभी प्यारे दोस्तों को समर्पित👍🙏

Thursday, 7 July 2022

 जब मैं बूढ़ा हो जाऊँगा!


जब मैं बूढ़ा हो जाऊँगा, एकदम जर्जर बूढ़ा, तब तू क्या थोड़ा मेरे पास रहेगा? मुझ पर थोड़ा धीरज तो रखेगा न? मान ले, तेरे महँगे काँच का बर्तन मेरे हाथ से अचानक गिर जाए या फिर मैं सब्ज़ी की कटोरी उलट दूँ टेबल पर, मैं तब बहुत अच्छे से नहीं देख सकूँगा न! मुझे तू चिल्लाकर डाँटना मत प्लीज़! बूढ़े लोग सब समय ख़ुद को उपेक्षित महसूस करते रहते हैं, तुझे नहीं पता?


एक दिन मुझे कान से सुनाई देना बंद हो जाएगा, एक बार में मुझे समझ में नहीं आएगा कि तू क्या कह रहा है, लेकिन इसलिए तू मुझे बहरा मत कहना! ज़रूरत पड़े तो कष्ट उठाकर एक बार फिर से वह बात कह देना या फिर लिख ही देना काग़ज़ पर। मुझे माफ़ कर देना, मैं तो कुदरत के नियम से बुढ़ा गया हूँ, मैं क्या करूँ बता?


और जब मेरे घुटने काँपने लगेंगे, दोनों पैर इस शरीर का वज़न उठाने से इनकार कर देंगे, तू थोड़ा-सा धीरज रखकर मुझे उठ खड़ा होने में मदद नहीं करेगा, बोल? जिस तरह तूने मेरे पैरों के पंजों पर खड़ा होकर पहली बार चलना सीखा था, उसी तरह?


कभी-कभी टूटे रेकॉर्ड प्लेयर की तरह मैं बकबक करता रहूँगा, तू थोड़ा कष्ट करके सुनना। मेरी खिल्ली मत उड़ाना प्लीज़। मेरी बकबक से बेचैन मत हो जाना। तुझे याद है, बचपन में तू एक गुब्बारे के लिए मेरे कान के पास कितनी देर तक भुनभुन करता रहता था, जब तक मैं तुझे वह ख़रीद न देता था, याद आ रहा है तुझे?


हो सके तो मेरे शरीर की गंध को भी माफ़ कर देना। मेरी देह में बुढ़ापे की गंध पैदा हो रही है। तब नहाने के लिए मुझसे ज़बर्दस्ती मत करना। मेरा शरीर उस समय बहुत कमज़ोर हो जाएगा, ज़रा-सा पानी लगते ही ठंड लग जाएगी। मुझे देखकर नाक मत सिकोड़ना प्लीज़! तुझे याद है, मैं तेरे पीछे दौड़ता रहता था क्योंकि तू नहाना नहीं चाहता था? तू विश्वास कर, बुड्ढों को ऐसा ही होता है। हो सकता है एक दिन तुझे यह समझ में आए, हो सकता है, एक दिन!


तेरे पास अगर समय रहे, हम लोग साथ में गप्पें लड़ाएँगे, ठीक है? भले ही कुछेक पल के लिए क्यों न हो। मैं तो दिन भर अकेला ही रहता हूँ, अकेले-अकेले मेरा समय नहीं कटता। मुझे पता है, तू अपने कामों में बहुत व्यस्त रहेगा, मेरी बुढ़ा गई बातें तुझे सुनने में अच्छी न भी लगें तो भी थोड़ा मेरे पास रहना। तुझे याद है, मैं कितनी ही बार तेरी छोटे गुड्डे की बातें सुना करता था, सुनता ही जाता था और तू बोलता ही रहता था, बोलता ही रहता था। मैं भी तुझे कितनी ही कहानियाँ सुनाया करता था, तुझे याद है?


एक दिन आएगा जब बिस्तर पर पड़ा रहूँगा, तब तू मेरी थोड़ी देखभाल करेगा? मुझे माफ़ कर देना यदि ग़लती से मैं बिस्तर गीला कर दूँ, अगर चादर गंदी कर दूँ, मेरे अंतिम समय में मुझे छोड़कर दूर मत रहना, प्लीज़!


जब समय हो जाएगा, मेरा हाथ तू अपनी मुट्ठी में भर लेना। मुझे थोड़ी हिम्मत देना ताकि मैं निर्भय होकर मृत्यु का आलिंगन कर सकूँ। चिंता मत करना, जब मुझे मेरे सृष्टा दिखाई दे जाएँगे, उनके कानों में फुसफुसाकर कहूँगा कि वे तेरा कल्याण करें। तुझे हर अमंगल से बचायें। कारण कि तू मुझसे प्यार करता था, मेरे बुढ़ापे के समय तूने मेरी देखभाल की थी।


मैं तुझसे बहुत-बहुत प्यार करता हूँ रे, तू ख़ूब अच्छे-से रहना। इसके अलावा और क्या कह सकता हूँ, क्या दे सकता हूँ भला। ■


🥺

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Thursday, 5 May 2022

 मुझे पूर्ण विश्वास हो चुका है कि बिहार में केवल जातीय नेता ही हुए है, होते हैं और अपनी दबंगई के बल पर वोट पालिटिक्स करते रहे हैं। 

महेश बाबू,  श्री कृष्ण बाबू,  अनुग्रह बाबू,  जगदेव बाबू,  वृषण पटेल,  राम लखन बाबू  सब के सब अपनों के अपनों के लिये और अपनों द्वारा ही थे,  बाकी कुछ चमचा थे,  डरे हुए थे। 

Thursday, 31 March 2022

 शिक्षक सामाजिक, व्यवाहारिक औचित्य का स्वरूप समझाता है,  अनुरोध करता है,  निरूपित करता है,  समझाता है। 

न्यायाधीश उसी की मात्रा घोषित करता है और त्रुटि होने पर दण्ड की घोषणा करता है। 

Saturday, 5 March 2022

 एक लब्ध प्रतिष्ठ आदरणीय थे।  हम लोग बहुत से लोग उनके आजू बाजू रहते थे कुछ सीखने,  उनके बताए कुछ करने के लिये।  वहाँ अधिकांश उनके अपने ही थे।  अन्य आते थे जाते थे।  जब मैंने उनका शागिर्द बनने का निर्णय लिया तो मेरी आलोचना भी हुई।  उन्होंने भी कोई खास उत्साह नहीं दिखाया।  सीखना था,  तिरस्कार भी हो तो सही।  उनके यहाँ नियमित जाने वालों में उनसे केवल श्रद्धा वश मैं ही था। 

काल क्रम में एक दिन मैंने लगभग मूर्खों की तरह पूछ दिया " जो भी जैसे भी आप आज हैं,  यहां तक पहुँचने में कितना समय लगा।  

फूल हाऊस उनके जूनियर बैठे थे।  मेरे दुस्साहस पर सब की भृकुटी तन गई।  पूज्य वर ने हँसते हुए कहा "चालीस साल"।

मुर्ख की भाँति मैं बोल पड़ा- मैं इस दूरी को चार साल में तय कर लूँगा। 

बड़ी मेरी निन्दा हुई। 

समय बीतता गया।  लगभग 5 साल बाद मैंने अपनी ऑफिस खोली।  पूज्य नियमित तौर पर आते थे। 

सुबह मैं पूज्य के यहाँ नियमित तौर पर कुछ देर के लिये जाता था। 

एक दिन फूल हाऊस के सामने पूज्य ने आदेश दिया- " बैठो "।

पूज्य मेरे प्रति स्नेह रखते थे,  उदार थे।  वह tone  दिल दिमाग को छु गई। 

किसी अनिष्ट की आशंका से कांपते हुए धम्म से एक कुर्सी पर जड़ हो गया। 

फूल हाऊस। 

एक टक मुझे ही ताक रहा,  बेटा,  आज ये तो गया काम से। 

पूज्य ने कहा: कितना साल हुआ,?

मैंने कहा छह साल। 

बोले यू आर लेट बाई 2 years।  आपने मेरे बराबर होने के लिये चार साल ही कहे थे न! छह साल लगा दिये,  और फिर अपनी कुर्सी से खड़े हों मुझे एक कीमती कलम,  डायरि, और Cr PC की किताब दी।  अपने हाथ से किताब पर मेरा नाम लिखा और अपना दस्तखत किया।  

मेरी आँखों में अविश्वास,  केवल पानी,  गला रुद्ध गया। 

मैं खड़ा हो गया,  उनके चरणों में गिर सा गया,  बोला " सब आपकी कृपा  है "।

पूज्य एकाएक जोर से बोले " मेरी कृपा कैसे,  मैंने क्या किया,  ये जो 10/20 साल से आते बैठते रहे,  इन पर मेरी कृपा नहीं है क्या? नहीं,  आपने खुद अपनी यात्रा तय की है और मैं कह सकता हूँ कि आपने अपना कहा सत्य कर दिखा दिया। 

वह दिन मेरे जीवन का स्वर्णिम दिन था।  पूज्य मेरे पूज्य थे,  आज सशरीर नहीं हैं,  पर मेरे साथ हैं। 

पूज्य को अनन्त प्रणाम।