Monday, 19 August 2019

शांति का मार्ग

हल्के होने और खुलते रहने का मार्ग ही शान्ति तक ले आया। जितना छिपाया, जितना छीपा, उतना ही अशांत हुआ।
खुलने में जितनी देरी की, शांति को ले कर संशय बना रहा।
एक झटके में जो खुला, सब कुछ सब के सामने खोल कर रख दिया, जैसे ही कुछ भी छिपा न रहा, सब कुछ बदल गया।
सब कुछ वही था।
मेरी नजर बदली और सब कुछ बदला।
बदली तो उनकी भी नजर।
पहले तो किसी ने विश्वास ही नहीं किया कि यह वास्तव में खुल ही गया, सब कुछ आम कर ही गया।
उनके मन में प्रश्न था कि यह कैसे हो सकता है कि अब इसके पास कुछ भी छिपाने लायक भी नहीं रहा !
पहले उन्हें झटका लगा।
अब तो उनकी भी निगाह बदल गयी।
नजर बदली, निगाह बदली, अर्थ और समझ, सब बदल गए।
सारा संशय साफ।
बस परमात्मा यही शक्ति देना, इसी तरह सदा खुला रहूँ, कुछ भी किसी से भी छिपा न रहे।
मैं कभी किसी को न बोलूं :-
धरमदास तोहे लाख दुहाई, सार वस्तु बाहर न जाई।
परमात्म और आत्म परिचय को सार्वजनिक हो जाने दो।
ॐ शांति

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