- पुलिस द्वारा तो अजीब ढंग से सुलझाया गया, जज साहब ने भी सुलझाया :
अनुसन्धान में पता चला कि वस्तुतः सूचना दाता ने ही अपने सरकारी शिक्षक पिता की हत्या कर दी थी ताकि उसे अनुकम्पा के आधार पर सरकारी नौकरी मिल जाये। अनुसंधानक के समक्ष अनेक ग्रामीणों ने इसी प्रकार का बयान दिया। मृतक की माँ, मृतक के एक लड़के की पत्नी ने मजिस्ट्रेट के समक्ष बयान भी दर्ज करवाया।
जज के समक्ष विचारण के क्रम में सारे ग्रामीण पक्ष द्रोही हुए। पर उन्होंने कहा कि मृतक की हत्या तो हुई पर कैसे किन परिस्थितियों में हुई नहीं पता।
मृतक की पूतोह एक दिन आई , मजिस्ट्रेट के समक्ष दिये बयान के अनुरूप बयान दे रही थी कि बचाव पक्ष ने पूरी जिरह न कर आंशिक जिरह की। अगले दिन वह भी बोली कि उसने अपने ससुर की हत्या होते नहीं देखा। मजिस्ट्रेट के सामने पुलिस के कहने पर बयान दिया। उसने कहा वह भाग गई थी। बचाव पक्ष सन्तुष्ट ।।
मृतक की पत्नी आई। वह अभियुक्त की माँ थी । दो दिन तो उसने अपने पति की हत्या पुत्र द्वारा किये जाने और मजिस्ट्रेट के समक्ष बयान की बात कही पर तीसरे दिन उसने भी कहा कि वह तो भाग गई थी, उसके पति की हत्या कैसे हुई उसने कुछ नहीं देखा।उसने बताया कि मजिस्ट्रेट के सामने उसने बयान बहकावे में दिया।
डॉक्टर आया । उसने मृतक की हत्या की गई इसको पुष्ट किया।
अनुसंधानक आया। उसने बताया कि खुद आरोपी ने ही प्रथम सूचना स्वेच्छया दायर की। अनुसन्धान के अंत मे सूचक पर ही अपराध प्रमाणित हुआ।
जज साहब ने सूचक अभियुक्त से पूछा कि क्या प्रथम सूचना पत्र आपने प्रस्तुत किया। जज साहब ने पूछा कि आपके द्वारा प्रस्तुत प्रथम सूचना पत्र जे अनुसार वारदात के समय आप उपस्थित थे।जज साहब ने पूछा कि गवाहों ने बताया कि मृतक की हत्या हुई।
अभियुक्त ने जबाब दिया जी हाँ।जज साहब ने पूछा कि आपकी मां, भाभी ने अनुसन्धान के दौरान मजिस्ट्रेट के सामने बयान दिया था तो अभियुक्त ने कहा कि पुलिस के दबाव में दिया।
जज साहब ने पूछा कि सफाई में क्या कहना है
तो उसने अपने पिता के बहुत से दुश्मन होने की बात और बहुत से मुकदमें में संलिप्त होने की बात कही।
सफाई में अभियुक्त ने मृतक और अन्य लोगों के बीच मुकदमों के कागज दिया।
वकील साहब ने बहस की कि इस मुकदमे के सारे गवाह मुकर चुके है, फैसला कर दिया जाये।
जज साहब ने फैसला सुनाया की स्वीकृत रूप से सूचक-अभियुक्त मृतक की मृत्यु के समय साथ था। यह तथ्य स्वयम सूचक-अभियुक्त स्वीकार करता है। अभियोजन के ओर से जितने भी गवाह हुए कम से कम सभी ने एक स्वर में बताया कि मृतक की हत्या हुई। मृतक की पत्नी ने मजिस्ट्रेट के समक्ष बयान दिया और कोर्ट में भी थोड़ी देर तक ठहरी पर बाद में वह मजिस्ट्रेट के समक्ष बयान से पलट गई पर उसने भी मृतक के हत्या की ही बात कही। किसी भी गवाह ने मृतक के घर डकैती की बात नहीं कही। अनुसंधानक ने बताया कि उसने मृतक के घर डकैती का कोई प्रमाण नहीं पाया। मृतक की हत्या ही हुई। गांव के लोग डकैती को ब खूबी समझते है।किसी ने डकैती की बात नहीं कही। सूचक अभियुक्त ने अपनी प्रथम सूचना में अज्ञात लोगों द्वारा डकैती की सीधी कहानी और उसमें पिता की हत्या की बात कही है। उस समय सूचक जो अब अभियुक्त ही, एकमात्र सूचक ही था। उस वक्त वह अभियुक्त नहीं बना था ।उसने अपनी सूचना में और जज के पूछने पर भी स्वीकार किया कि वारदात के समय वह उपस्थित था ।अब अभिलेख पर डकैती का कोई प्रमाण नहीं है।घटना स्थल पर कोई विवाद है ही नहीं। मृतक की हत्या हुई इस पर विवाद रहा ही नहीं। सीधी सपाट मृतक की हत्या का मामला है। हत्या के समय अभियुक्त की उपस्थिति स्वीकृत है। अब अभियुक्त अपने पिता के दुश्मन और मुकदमे की बात कह रहा है। पर स्वयम अभियुक्त के सबसे पहले बयान में इन मुकदमों का या दुश्मनों का कोई जिक्र नहीं है।
इन सबको मिला कर जब मृतक की पत्नी के दो दिन तक कोर्ट में बयान और मजिस्ट्रेट के सामने बयान को देखने से लगता है अंत में पत्नी हार गई और माँ जीत गयी। उसकी गवाही को यदि वह आगे भी बढ़ाती तो भी उसका पति तो नहीं ही लौटता सो अंत में उसने ममता वश बेटे के लिये चुप रहना स्वीकार किया। पर वास्तव में उस माँ का मजिस्ट्रेट के सामने दिया बयान ही सही था।
जब मृतक की हत्या हुई उस समय अभियुक्त अकेला ही उपस्थित था और उसने पुलिस में डकैती की झूठी सूचना दी।
निष्कर्ष में पितृहन्ता को आजीवन कारावास।शायद अपील में भी निर्णय सम्पुष्ट हुआ
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