Monday, 19 August 2019

बड़े लोगों के सम्पर्क की इच्छा में बेगार सहायक होती है

थोड़ी सी उनकी बेगार कर, उनके नखरे उठा, उनको बर्दास्त कर।
जब मैं 20 साल का हुआ ही था तो स्थानीय सोशल क्लब जाने लगा था।क्लब के नियमानुसार मैं न क्लब के मेंबर हो सकता था न मेरा प्रवेश अनुमत था। मैं पाँच बजे शाम के बाद किसी समय एक बार क्लब के मेन गेट तक नियमित रूप से चला ही जाता था। स्थानीय स्तर पर क्लब शहर के सबसे बड़े अफसर, डॉक्टर, वकील ही जाते थे। लोगो के मन में क्लब के अंदर क्या होता है, को लेकर बड़ा कौतूहल रहता था। मेरे मन में भी था।इस बीच शहर के एक ADM से मेरे कलकत्ते में पढ़े होने के कारण औऱ जयप्रकाश आंदोलन में परीक्षा के बहिष्कार के बाद भी में परीक्षा देने गया था, इस कारण परिचय हो गया। एक दिन जाड़े के मौसम में मैं लगभग कौतूहल वश क्लब के गेट पर खड़ा था। ADM जीप से आये। मुझे देखे। क्लब के चक्कर लगाया और जाने लगे। मैंने ढीठ की तरह अंग्रेजी में पूछा क्या मैं क्लब को अंदर से देख सकता हूँ। ADM ने केयरटेकर को कहा दिखला दो। मुझे कहा कि यहाँ आज मीटिंग होने वाली है। आप देख कर तुरन्त निकल जाइयेगा।
बस केयर टेकर ने मुझे क्लब दिखाया। सब कुछ साधारण था। दो क्लब साइज कैरम बोर्ड, चार छः टेबल चार चार कुर्सियां, मुझे बताया गया - रम्मी, पपलू, ब्रीज खेलने के लिये, एक टेबल टेनिस कर लिये बड़ा सा रूम, दो चार और रूम। मैं यह सब देख कर इस प्रकार वापस निकला कि मैंने बहुत बड़ा तीर मार लिया है। बड़े चाव से मैंने लोगों को बताया कि मैं क्लब के अंदर गया।सब आश्चर्य चकित। मुझे बताया गया वहाँ नहीं जाने का , छोकरिबाजी और शराब का अड्डा है।
मैं फिर भी हर शाम दस पाँच मिनट के लिये जाता ही था।एक दिन कोई कारण वश एक टी टी बोल क्लब के मेन गेट से उछलते हुए बाहर आ गयी। पहली बार मैंने उसे छुआ, उठाया और उत्साह से क्लब के अंदर देने चला गया। देखा कोई साहब थे, अकेले ही टेबल टेनिस बाल के साथ दृबलिंग टाइप कर टाइम पास कर रहे थे।फिर तो हर दो चार दिन पर क्लब के अंदर जाने का अवसर मिलता रहा। टेबलों पर रखी ताश की गड्डियों को छुने लगा। ताश के शौकीन सबसे पहले आते। वे अकेले बैठ ताश मेक करते। ताश फेंटते। में उनके सधे हाथों को और ताश के पत्तों की फड़फड़ाहट को उत्सुकता से देखता।कभी कभार कोई पत्ता उड़ जाता, टेबल से नीचे गिर जाता तो मैं उसे बड़े गर्व से उठा टेबल पर रख देता। कभी कोई कैरम की गोटी बोर्ड से गिर जाती तो उठा देता। टेबलबटेनिस की बाल तो धीरे धीरे उठाने की मेरी अघोषित ड्यूटी ही हो गयी। कभी किसी को पान मंगाना हुआ तो मुझे कहता। सिगरेट के लिए भी। धीरे धीरे शायद एक वालेंटियर सेवक के रूप में मेरा क्लब जाना नियमित हो गया।
इस तरह बेगारी कर के मैं शहर के सारे वकीलों से परिचित हो गया, डॉक्टर भी जानने लगे या यूं कहिए कि मैं कुछ डॉक्टर, वकील, DM,SDO और कुछ अफसरों को जानने लगा।
धीरे धीरे मेरी पहुँच, स्वीकार्यता बढ़ने लगी।
मैं बड़ों के सम्पर्क में आने लगा था।
बड़े बड़ों की तरह हंसी मजाक करते तो मैं एकदम चुप। सिर झुका लेता।
कोई यदि मेरे किसी बॉडीलैंग्वेज पर आपत्ति करता तो मैं सिर झुका लेता।
पर उन लोगों के साथ उठते बैठते मेरे सोचने, समझने, उठने बैठने, बोलने चलने के ढंग में आश्चर्यजनक परिवर्तन आने लगा।
मेरी प्राथमिकताएं बदलने लगी।
मैं और अधिक सजग हो गया। धीरे धीरे मेरे अंदर अतिरिक्त आत्मविश्वास उत्पन्न होने लगा।

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