Monday, 24 December 2018

पर्दे में रहना बड़प्पन नहीं, भय की निशानी है।पवित्रता की नहीं ब्यभिचार की निशानी है। पशु, पक्षी को कभी भी किसी समय किसी आवरण की आवश्यकता नहीं होता। फूल पौधों को भी नहीं। नदी नालों  को भी नहीं।
फिर हमको और आपको क्यों ? हम क्यों अपने चारों ओर दीवार पर दीवार, प्रकोष्ठ डर प्रकोष्ठ बना लेते हैं।
न्यूक्लियर बम ताकत नहीं शुद्ध भय का परिचायक है।
यदि भय नहीं होगा तो आपको किसी आवरण की जरूरत नहीं होगी।
सबसे अधिक भय मनुष्य को अपने आप से लगता है।वह पाप करता है।और पाप का फल जानता है। विवेक और स्वार्थ, कर्तब्य और स्वार्थ, अधिकार और लोभ-स्वार्थ के घालमेल भय का कारण है, भय के कारण है।
इसी से स्ट्रेस है, तनाव है।
केवल स्वार्थ के साथ खड़े हो जाइए, स्ट्रेस से बच जाएँगे।केवल विवेक के साथ  हो कर भी स्ट्रेस से बचा जा सकता हसि। पर स्ट्रेस तब आता है जब हम आप स्वार्थ और विवेक दोनों की साधना चाहते हैं।आग और पानी को एक साथ साधना चाहते है।जमीन और आसमान को एक साथ छूना चाहते हैं। क्षितिज को आसमान और जमीन मिलने का स्थान समझ बैठते हैं। आसमान और क्षितिज वहीं मिलते है। बस उधर ही दौड़ गए।जितना मर्जी दौड़ो, क्षितिज तो दूर ही रहेगा। आसमान और पृथ्वी तो मिलते नहीं। यह तो तुम्हारा दृष्टि दोष है। उसी को आप सत्य, वास्तविकता मान बैठे हो। आसमान छोड़ दो, पृथ्वी पर अपने आप आ जाओगे। धरती छोड़ दो, आसमान पर चले जाओगे।
पर धरती, आसमान, आग, पानी, संसार और शिव सभी को साथ लेकर चलने की कोशिश ही स्ट्रेस का कारण है।
शुद्ध पवित्र हो जाओ, स्ट्रेस गायब।

  1. शुद्ध अपवित्र हो जाओ, स्ट्रेस गायब।क्यों करते हो पवित्रता की चिंता। यदि अपवित्र हो यो वैसे ही दिखो।अपवित्र रहो और स्वीकार करो। वैसा ही दिखो। देखो, स्ट्रेस गायब।

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