- भारत के ग्रामीण जीवन में जो निराश का भाव है, उसका एक कारण ग्रामीण परिवेश में साधनों का अभाव तो हो ही सकता है, परन्तु एक कारण ग्रामीण दृष्टिकोण भी है।
भारतीय सामाजिक संरचना में या तो बहुत तात्कालिक यात्राएँ की जाती है , तात्कालिक लक्ष्य निर्धारित किये जाते हैं या फिर दर्शन शास्त्रीय मुक्ति, मोक्ष आदि के लक्ष्य निर्धारित किये जाते हैं।
या तो बस रोटी, कपड़ा, मकान या फिर सीधे मोक्ष, बीच मरण कुछ नहीं।
मैनें अपने चारों और इस खाई को बड़े करीब से देखा, या तो लोग रोटी-कपड़ा-मकान पर ध्यान गड़ाए हुए रहते हैं या सीधे मुक्ति -मोक्ष पर।
देखिये, ये दोनों ही लक्ष्य अनिष्टकारी हैं।
पहला तो रोटी-कपड़ा-मकान यह थोड़े से सार्थक प्रयास से प्राप्त हो जाता है।
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