Monday, 24 December 2018

देखिये, एक बात स्पष्ट है कि दुश्मन के साथ रहने, लड़ने, उसके स्मरण से किसी न किसी प्रकार आपमें दुश्मन के संस्कार तो आते ही हैं।
दुश्मन हार भी जाये तो भी वह अपने पीछे अपनी सम्पत्ति, अपना घर मकान और अपनी यादें तो छोड़ ही जाता है। यह सब सामान विजय प्राप्त करने वाला उपयोग में लाता ही है। पराजित पक्ष का धन जन विजयी पक्ष भोग करता है। इसी प्रकार पराजित दुश्मन के संस्कार होते है। पराजित पक्ष के संस्कारों का परभव विजयी पक्ष पर पड़ता ही है।
आपका दुश्मन ,दुश्मन इसलिये नहीं है कि वह आपसे बुरा है और आप उससे अच्छे। दुश्मनी का कारण स्वार्थ का टकराव है।
चोर की दुश्मनी पुलिस से इसलिये है क्यों कि पुलिस चोर को चोरी करने से रोकने का प्रयास करती है।चोर पुलिस से बैर रखता है। इससे चोर शुद्ध नहीं हो जाता।
अनेक विचार, अनेक समस्याएँ, अनेक देश, अनेक समूह, दूसरे विचार, दूसरे देश, दूसरी सभ्यता अथवा दूसरे समूह,परस्पर लड़ते झगड़ते रहते हैं। वैमनस्य रखते हैं। दुश्मनी रखते हैं।
पर यह दो विचारों, सभ्यताओं, दो समूहों में पारस्परिक दुश्मनी  या प्रतिस्पर्धा किसी एक कि श्रेष्ठता का प्रमाण नहीं है।
युद्ध का परिणाम भी युद्ध के कारणों का औचित्य सिद्ध नहीं कर सकते। कोर्ट - कचहरियों में मुकदमें जीत जाने से या हार जाने से पक्षकार का औचित्य सिद्ध नहीं किया जा सकता। हर ब्यक्ति की प्रतिरोध शक्ति अलग होती है, मात्रा, प्रकार औऱ प्रकृति में।
हर या जीत का सम्बंध इसी आंतरिक और वाह्य प्रतिरोध शक्ति पर निर्भर होती है।विरोध भी पसंद नापसन्द पर अधिक आधारित है। न कि औचित्य या अनौचित्य पर।

No comments:

Post a Comment