Monday, 30 December 2013

 कामेन्द्रिय  अथवा ज्ञानेन्द्रिय  या कि  फिलोसफी  या दर्शन  या  दार्शनिक , यह मेरा  विषय़  या विचार नहीं    है। विश्व  कर्म प्रधान करी करि  राखा।  कर्मन्येवधिकरस्ते मा फलेषु कदाचन।

मैं  विचारेन्द्रिय , कर्मेंद्रिय ,कर्म एवम विचारों  पर ही केंद्रित रहने का  प्रयास   करता  हुँ।
कर्म मात्र  ही करने योग्य  है।  इन्द्रिय का महत्व बहुत नहीं हैं।  प्रश्न कृति ,कर्म, विचारों का ही होता है। 
संपूर्ण संदर्भ शास्त्र  विचार विलास  है  जो केवल कर्म की प्रधानता स्वीकार  करते हैं। 
मैं जीतेन्द्रीय नहीं हूं।  प्रज्ञा विलास ,खुले  मन से ,बिना पूर्वाग्रह  के  सबकी सुनते हुए ,,यह मेरा मार्ग है।
मन  सर्वोपरी है। इन्द्रिय मन नही। अतींद्रिय मन।
मानसिक स्पर्श ,आत्मिक स्पर्श ,कायिक स्पर्श ,कुब्जा -कृष्ण स्पर्श ,अहिल्या -स्पर्श , दुर्वाषा स्पर्श। 
में  विचार -विचरण करता  हुँ। 
नये से मूल्यांकन ,निंदा ,नये  की बात ही आनंद है ,उपलब्धि है ,उसने देखा ,कहा ,यही बहुत है। 

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