Monday, 30 December 2013

बिन बरसे बादल, मेरी मुट्ठी में
सोयी मट्टि ,सोया चूल्हा
गटकता थूक हर घुट्टी में
नही सोया जो सपना
वह देखो मेरी आँखों  में।
अनखेला बचपन देखो
 ऊंघ रहा इसी आंगन में
कितने साल युँ बीत गये
यह साल भी क्या बीतेगा।

बिना जीवन ही क्या जीना होगा
बिना हंसी क्या हंसना  होगा।
क्या अब भी नींद बिना सपनो के
कैसे  चल पाउँगा बिना अपनों के
भूख लगेगी तो क्या वादे खाऊंगा
बुझे दिल से  तो क्या गाने गाऊंगा
नववर्ष  तुम्हारा ,तुम्हे मुबारक
उम्मीदों के सहारे मुझे जी लेने दो। 

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