प्रश्न खड़े करना सीखो। प्रश्नों को सलीके से पूछना सीखो।
प्रश्न दागना एक कला है। सामने वाले के सामने प्रश्न को शान्ति से रख भर देना, फिर प्रतिक्रिया का इन्तजार, बस यही तो सीखना है।
प्रश्न पहचानना भी कला है। प्रश्नों का संभालना भी कला है। जाने कब किस प्रश्न का जबाब कहाँ मिल जाये।
सभी प्रश्नों का जबाब तत्काल न तो दिया जा सकता हैं न तत्काल जबाब देना जरूरी है। किसी किसी प्रश्न का जबाब देने में तो पीढ़ियाँ लग जाती है।
खुछ प्रश्न सार्वकालिक होते हैं।
प्रश्न प्रश्न ही होते हैं, और कुछ नहीं।उनका अपना संसार होता है।
उत्तर प्रश्नों की दुनिया या परिवार के अपने नहीं पराये होते हैं, उत्तरों के भरोसे प्रश्नों से पार नहीं पाया जा सकता।
प्रश्न स्वयंभु होते हैं, निराकार होते हैं।अटल होते हैं।अनन्त होते हैं। प्रश्न बहुरुपिया किस्म के होते हें- मायावी होते हैं।
प्रश्न देखने से, सुनने से, पढ़ने से, ज्ञान से अनायास बढ़ते है, पैदा हुए ही जाते हैं, थमने का नाम नहीं।
समय , काल ,परिस्थिति कुछ भी बदलते ही वही प्रश्न पुनः हाजिर हो जाता है।प्रश्न कई बार कतरों में आते हैं।
आपस में लड़ते झगडते आते हैं। प्रश्नों में आपस में बैर, प्रेम तथा प्रतियोगिता होती है।प्रश्न बुलाने पर नहीं आते, बिना बुलाये आते ही दिखते हैं। प्रश्न उत्तर के रूप में भी आते हैं , कई बार एक ही प्रश्न कई प्रश्नों का उत्तर बन जाते हैं।
प्रश्न पालने नहीं चाहिये। तुरत चलता किजिये। दिमाग खराब कर देते हैं । फसाद की जड़ होते हैं ये प्रश्न ।इस डाल से उस डाल, गौरैया की तरह उड़ते फिरते हैं- गिलहरी की तरह फुदकते चलते हैं-नाचते चलते हैं।
दिन-रात, समय-कुसमय कुछ भी नहीं देखते।, जब मन किया चले आये। आने का भी तरीका नहीं। कभी एकदम से ठीक आँख के सामने, पलक झपकते।,कभी सोचतै सोचते। कभी सपनों में तो कभी नाचते -घोरते-। कभी- कभी तो इतने चुपचाप की पता ही नहीं चलता कि प्रश्न बगल में ही खड़ा है और व भी कब से।
प्रश्न दागना एक कला है। सामने वाले के सामने प्रश्न को शान्ति से रख भर देना, फिर प्रतिक्रिया का इन्तजार, बस यही तो सीखना है।
प्रश्न पहचानना भी कला है। प्रश्नों का संभालना भी कला है। जाने कब किस प्रश्न का जबाब कहाँ मिल जाये।
सभी प्रश्नों का जबाब तत्काल न तो दिया जा सकता हैं न तत्काल जबाब देना जरूरी है। किसी किसी प्रश्न का जबाब देने में तो पीढ़ियाँ लग जाती है।
खुछ प्रश्न सार्वकालिक होते हैं।
प्रश्न प्रश्न ही होते हैं, और कुछ नहीं।उनका अपना संसार होता है।
उत्तर प्रश्नों की दुनिया या परिवार के अपने नहीं पराये होते हैं, उत्तरों के भरोसे प्रश्नों से पार नहीं पाया जा सकता।
प्रश्न स्वयंभु होते हैं, निराकार होते हैं।अटल होते हैं।अनन्त होते हैं। प्रश्न बहुरुपिया किस्म के होते हें- मायावी होते हैं।
प्रश्न देखने से, सुनने से, पढ़ने से, ज्ञान से अनायास बढ़ते है, पैदा हुए ही जाते हैं, थमने का नाम नहीं।
समय , काल ,परिस्थिति कुछ भी बदलते ही वही प्रश्न पुनः हाजिर हो जाता है।प्रश्न कई बार कतरों में आते हैं।
आपस में लड़ते झगडते आते हैं। प्रश्नों में आपस में बैर, प्रेम तथा प्रतियोगिता होती है।प्रश्न बुलाने पर नहीं आते, बिना बुलाये आते ही दिखते हैं। प्रश्न उत्तर के रूप में भी आते हैं , कई बार एक ही प्रश्न कई प्रश्नों का उत्तर बन जाते हैं।
प्रश्न पालने नहीं चाहिये। तुरत चलता किजिये। दिमाग खराब कर देते हैं । फसाद की जड़ होते हैं ये प्रश्न ।इस डाल से उस डाल, गौरैया की तरह उड़ते फिरते हैं- गिलहरी की तरह फुदकते चलते हैं-नाचते चलते हैं।
दिन-रात, समय-कुसमय कुछ भी नहीं देखते।, जब मन किया चले आये। आने का भी तरीका नहीं। कभी एकदम से ठीक आँख के सामने, पलक झपकते।,कभी सोचतै सोचते। कभी सपनों में तो कभी नाचते -घोरते-। कभी- कभी तो इतने चुपचाप की पता ही नहीं चलता कि प्रश्न बगल में ही खड़ा है और व भी कब से।
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