Friday, 3 April 2015

दो-चार इंट और रख ही दिया है मैनें- बस कोशिश यही रहती है -हर रोज एक नई इंट कहीं सिलसिले से , करीने से रखता रहूँ   .
आज फिर दो-चार कदम चलने का मन करता है .एक एक कदम चलते एक   रहने से ही तमाम दूरियाँ दूर होती जाती है .बस चलने का मन बने रहना चाहिये चलते रहना चाहिये .. रुकने के ठीक पहले  और बाद बस एक कदम और चल देना है - रुकना नहीं , थकना नहीं -बस चलते ही चले जाना है .
हाँ  ध्यान रहे -सिलसिले से जाना है , सम्भल कर ही जाना है ,निरंतर चलना है .




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