Wednesday, 7 January 2015

मैं तुम्हारे देखने भर के लिये नहीं बना हूँ ,न ही मैं तुम्हारे मनोरंजन की विषय वस्तु हूँ , मैं आह, आहा , वाह , क्या बात है  के लिये नहीं जीना चाहता , मैं साबशियों क लिये ,फूल मालाओं के लिये ,स्तुतिगान के लिये रुकने या प्रतीक्षा नहीं करने जा रहा ,न इनमें से कोई कभी भी मेरा लक्ष्य था न है ,न रहेगा . तुम्हारी आलोचना न पहले , न अब , न  भविष्य में मुझे विचलित करेगी न प्रभावित .
मेरा बस एक ही लक्ष्य है ,रहेगा - सामाजिक मूल्य ,सामूहिक उपयोगिता , भविष्य की और समुचित सुरक्षा  के साथ सारे संकुल समाज की समवेत यात्रा .
ये बहारें ,बसंत के ये नजारे मुझे अच्छे नहीं लगते ऐसी बात नहीं है , बस ये  तनिक रूक ही जाये तो क्या नुकसान होगा .मैं इन में अटकना , भटकना नहीं चाहता . मैं इन्हें जरा प्रतीक्षा कर लेने का अनुरोध भर तो कर ही सकता हूँ .
अनंत से होकर यह जीवन अनंत तक जाता ही रहेगा .सतत ! फिर मैं ही क्यों रुकूं .
ये आवेग का भ्रम ही तो है जो मेरी गति को रोक देगा जब की यह आवेग स्वयं अभी कुछ ही देर में नष्ट हो ही जायेगा .
इन आवेगों के भंवर में क्या फंसना . अपने आप को आवेगों से परे  रख कर आगे के लिये आप सबके साथ चैतन्य हो कर बढ़ चलना ही भला .

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