Thursday, 1 January 2015

समय की रेत पर जो पड़  चुके हैं ये निशान मेरे यूँ  चलने से , उसे तुम यों मिटा न पाओगे
जब भी चला हूँ ,जैसा भी चला हूँ ,जी भर चला हूँ ,मेरे साथ चली हवा , उसे हटा न पाओगे .
मेरे निशानों का मेरे चलने से अजीब रिश्ता रहा ,मेरे चलने के आगे आगे मेरे निशान चले
इन हवाओं का रंग भी हरपल अलग सा होता रहा ,मैं चलता रहा था, ये मचलती  रही थी 

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