Friday, 2 January 2015

सूखता क्यों नहीं इन पनीयाई आँखों का पानी
बार बार ये उफान ,कहाँ से यूँ क्यों चले आता है

ये आँखे बनी जा रही समन्दर ,उठ रही लहरे
बार बार ये तूफ़ान ,कहाँ से यूँ क्यों उठे जा रहा

सपने ही तो थे , जो इन आँखों ने देख लिये थे
फिर अब  ये बवंडर यूँ ,कहाँ से यूँ उठे आ रहा है

सोयी ही तो थी नींद , आंखों में इत्मिनान से जब
जलजला यूँ क्यों बरपा ,कहाँ से बरसता आ रहा .

बचपन में लौटने की थी ख्वाहिश ,और था क्या
भीड़ यूँ क्यों लड़ने लगी ,क्यों यूँ बढ़ती जा रही .

दामन ही तो बचाया था ,अंगारों से ही आज तक
दहकने कुछ यूँ क्यों लगा ,लहकता क्यूँ जा रहा

जिन्दा ही तो रखा था ,इन दो चार अरमानों को
आज ये उदास क्यूँ दिखे ,दम क्यूँ उखड़ा जा रहा .

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