जब मैं पैदा होता हूँ तो मुझे कोई शर्म नहीं और जब मैं मर गया होता हूँ यब भी मुझे कोई शर्म या हया नहीं .
जिस शर्म अथवा हया की आप बात करते हैं , यही तो है सच के ऊपर डाल दी गई चादर जिससे हमने आपने सच को छिपाने का प्रयास किया है .
अपने सच को छिपाने का प्रयास हम सदैव करते रहते है .कभी कपड़ों से , कभी पत्तों से ,कभी किताबों से , कभी तर्कों से .
जीतने भी आवरण हम ओढ़ते हैं वह सब हम अपने अन्दर के सत्य को छिपाने के लिए ढोंग रचते हैं .
लोभ को छिपाने के लिये दान आदि का ढोंग ,अहंकार को छिपाने के लिए विनम्रता का ढोंग ,क्रोध को छिपाने के लिये प्रेम का ढोंग .काम को छिपाने के लिये लंगोट का ढोंग .
जो नंगा है उसे न तोप्रेम की आवश्यकता,न दान देने अथवा लेने की .नंगा मोक्ष की भी जरुरत महसूस नहीं करता .उसे शब्द या व्यवहार जाल की क्या आवश्यकता .
इस समाज के नीति मूल्य स्थिर नहीं ,व्यक्ति तथा समय-परिस्थिति-स्वार्थ सापेक्ष होते है . मूल्यों के अपने निहितार्थ होते हैं. मर्यादा की परिभाषा समर्थ लोग अपनी सुसिधा के अनुसार बदलते रहते है .
वह रे हमारे मुल्य !
वह रे हमारी मर्यादा !
इस समाज ने मर्याद के नाम पर सदैव सत्य का शील हरण ही किया है - निर्ल्लज्ज बलत्कार - सार्वजनिक अपमान .
पर वह रे सत्य .
वह रे जीवन !
आज भी पूरी ताकत से जीवित है .
जिस शर्म अथवा हया की आप बात करते हैं , यही तो है सच के ऊपर डाल दी गई चादर जिससे हमने आपने सच को छिपाने का प्रयास किया है .
अपने सच को छिपाने का प्रयास हम सदैव करते रहते है .कभी कपड़ों से , कभी पत्तों से ,कभी किताबों से , कभी तर्कों से .
जीतने भी आवरण हम ओढ़ते हैं वह सब हम अपने अन्दर के सत्य को छिपाने के लिए ढोंग रचते हैं .
लोभ को छिपाने के लिये दान आदि का ढोंग ,अहंकार को छिपाने के लिए विनम्रता का ढोंग ,क्रोध को छिपाने के लिये प्रेम का ढोंग .काम को छिपाने के लिये लंगोट का ढोंग .
जो नंगा है उसे न तोप्रेम की आवश्यकता,न दान देने अथवा लेने की .नंगा मोक्ष की भी जरुरत महसूस नहीं करता .उसे शब्द या व्यवहार जाल की क्या आवश्यकता .
इस समाज के नीति मूल्य स्थिर नहीं ,व्यक्ति तथा समय-परिस्थिति-स्वार्थ सापेक्ष होते है . मूल्यों के अपने निहितार्थ होते हैं. मर्यादा की परिभाषा समर्थ लोग अपनी सुसिधा के अनुसार बदलते रहते है .
वह रे हमारे मुल्य !
वह रे हमारी मर्यादा !
इस समाज ने मर्याद के नाम पर सदैव सत्य का शील हरण ही किया है - निर्ल्लज्ज बलत्कार - सार्वजनिक अपमान .
पर वह रे सत्य .
वह रे जीवन !
आज भी पूरी ताकत से जीवित है .
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