Wednesday, 3 December 2014

लगभग ४३ वर्षों के अन्तराल के बाद अब समझ में आता है कि जीवन में कभी कुछ समाप्त नहीं होता.
जीवन में कभी सम्पूर्ण अंधकार आ ही नहीं सकता .जीवन समाप्त हो ही ही नहीं  सकता .
आज समझ में आता है की जीवन के हर आयाम में एक पूर्ण नया जीवन विश्राम कर रहा होता है .जीवन का एक न एक रूप में अस्तित्व सदैव बना ही रहता है .केवल उसकी गति में अन्तर आता है .

No comments:

Post a Comment