Wednesday, 3 December 2014

तुम चुप भी तो रह सकते थे , बोले क्यों ?
ईमान अकेली तुम्हारी ही जागीर तो नहीं !
जब सब चुप थे , देख तो सब ही रहे थे न ,
जब कोई नहीं बोला तो तुम मुंह खोले क्यों ?

सब के सब तुमसे अधिक पराक्रमी  ही थे न !
किसी ने हाथ भी हिलाया ,आँख भी थी उठाई !
कोई अपनी जगह से हिला डुला  भी था क्या !
सब कुछ जब जड़ ही  था तो तुम चैतन्य क्यों ?

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