Friday, 19 December 2014

कुछ विधाएँ हैं जिनमे सफलता पूर्वक आगे बढ़ने ,बढ़ते रहने के लिये अलग रणनीति की आवश्यकता होती है ---- वैसे जो आपका मुल्यांकन करते है , उनकी सब्जेक्टिविटी और उनके पर्सनल लाईक दिस्लाईक , मूड का भी ध्यान रखना होता है .
मूल्यों के नाम पर या नैतिकता के नाम पर अड़ने में शहीद होने या कर दिये जाने या करवा दिये जाने का खतरा होता है .
खुशामद प्रेक्टिकल रणनीति का हिस्सा प्रतीत होता है . कुछ लोग खुशामद नहीं कर पाते -विरुदावली नहीं गा पाते .वैसे लोग कृपा से प्राप्त होने वाले प्रसाद से वंचित तो रहते ही हैं,कई बार उनके खुशामद नहीं करने के आग्रह को उनके अहंकार के रूप में देखा जाता है और वे खुशामद के भूखे लोगों के कोपभाजन बनते हैं

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