यह कैसा तर्क है -कैसी प्रार्थना है- मुझे तो समझ में नहीं आती -----
मैं तुम्हारी शरण में आ गया ,मैनें तुम्हारा आश्रय ले लिया , तुम्हारे साथ हो लिया , तुम्हारा हो गया- मुझे अपना बना लो ,मेरी गलतियों को मत देखो ,मेरे सारे पापों को जानते हुए भी चूँकि मैं अब तुम्हारी शरण में आ चूका हूँ , अतएव मुझे सरे पापों के सारे प्रभाव से मुक्त कर दो और मुझे निर्मल कर दो -----
बिना प्रयश्चित के ? बिना दंड के ? आखिर यह कैसे किया ही जा सकता है । पापों के सम्बन्ध में अभय दान कैसे दिया जा सकता है।
जिसके प्रति पाप किया गया उसका रंच मात्र भी विचार नहीं , जिक्र तक नहीं।
पीड़ित के बारे में कौन विचारेगा?
कोई यह कैसे कह सकता है की सभी को छोड़ मेरे पास आओ , मैं तुम्हारे सारे पाप हर लूँगा।
आप पापी की रक्षा कैसे करेंगे।
बिना प्रयश्चित के ? बिना दंड के ? आखिर यह कैसे किया ही जा सकता है । पापों के सम्बन्ध में अभय दान कैसे दिया जा सकता है।
जिसके प्रति पाप किया गया उसका रंच मात्र भी विचार नहीं , जिक्र तक नहीं।
पीड़ित के बारे में कौन विचारेगा?
कोई यह कैसे कह सकता है की सभी को छोड़ मेरे पास आओ , मैं तुम्हारे सारे पाप हर लूँगा।
आप पापी की रक्षा कैसे करेंगे।
क्या विकृत स्वार्थ और गुटबन्दी की यह पराकाष्ठा नहीं है .
केवल इश्वर बनने के लिए आप पीड़ित के प्रति इतना बड़ा अपमान कैसे कर सकते है .
केवल इश्वर बनने के लिए आप पीड़ित के प्रति इतना बड़ा अपमान कैसे कर सकते है .
क्याय सचमुच आप ऐसा करते है ?
ऐसा करने के बाद भी आप भगवान कैसे बने रहते है.
आइये , चले ,पूछे जिसने हमारे अनंत दुखो के कारण उस पापी को केवल इस लिए अपना कर निर्दोष घोषित करने का उपक्रम रच रखा है , क्योंकि अब वः पापी उसके तलवे चाट रहा है ,उसके शरण और संरक्षण में हैं ..
चलेंगे मेरे साथ.?
चलेंगे मेरे साथ.?
आप में से कोइ नहीं भी मेरे साथ होगा तब भी मैं आपकी निंदा-प्रश्न के बीच भी अकेला खड़ा रहूँगा, चलते ही रहूँगा.
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