एक गड़ेरिया अपनी भेड़ों की भेडियों से रक्षा करते हुए किस तरह लहू-लुहान हो जाता है , कैसे रात -रात भर जगता है - यह शायद भेड़िया जान चूका होता है , गड़ेरिये का तो वह भोग हुआ सत्य है , पर शायद बेचारी निरीह भेड़ें कभी भी नहीं जान पाएंगी .
शायद भेड़िये की गर्दन पर या कहीं और आज भी गड़ेरिये द्वारा चलाई गई लाठी की चोट का निशान बाकी हो , गड़ेरिये द्वारा फेंकी गई जलती लुआठी से जले का निशान बाकी हो .
हाँ यह सही है की गड़ेरिया भी भेड़िये से लड़ने के बाद अब ता जिन्दगी लंगड़ा कर ही चलेगा .
पर गड़ेरिया अब भी इत्मिनान से सोता है की उसकी ३०० प्यारी भेड़ें पुर्णतः सुरक्षित रही हैं .
भेड़िया नहीं जीत सका
शायद भेड़िये की गर्दन पर या कहीं और आज भी गड़ेरिये द्वारा चलाई गई लाठी की चोट का निशान बाकी हो , गड़ेरिये द्वारा फेंकी गई जलती लुआठी से जले का निशान बाकी हो .
हाँ यह सही है की गड़ेरिया भी भेड़िये से लड़ने के बाद अब ता जिन्दगी लंगड़ा कर ही चलेगा .
पर गड़ेरिया अब भी इत्मिनान से सोता है की उसकी ३०० प्यारी भेड़ें पुर्णतः सुरक्षित रही हैं .
भेड़िया नहीं जीत सका
No comments:
Post a Comment