एक खेल ,एक या कुछ आदमी और सारी संस्थाएं ?
मुझे तो भरी गोलमाल लग रहा है !.
क्या किसी दरवाजे से जूआ का संस्थागत वैधानिक स्वरुप गढ़ा या गढ़वाया जा रहा है ?.
सारा समय बस इसी के लिए लग जा रहा है और कोइ प्रश्न करने वाला नहीं है !
- बस खेल को खेल ही रहने दो ! अन्य मोहर मार कर उसको और महत्वपूर्ण मत बनाओ !!!
पर यह बोलेगा कौन ?
मुझे तो भरी गोलमाल लग रहा है !.
क्या किसी दरवाजे से जूआ का संस्थागत वैधानिक स्वरुप गढ़ा या गढ़वाया जा रहा है ?.
सारा समय बस इसी के लिए लग जा रहा है और कोइ प्रश्न करने वाला नहीं है !
- बस खेल को खेल ही रहने दो ! अन्य मोहर मार कर उसको और महत्वपूर्ण मत बनाओ !!!
पर यह बोलेगा कौन ?
No comments:
Post a Comment