Wednesday, 3 December 2014

समाज के पुरे जीवन काल में बहुत कम ऐसे समय आते हैं जब बहुत से च्न्तक--विचारक-मनस्वी -अलग अलग विधाओं और मार्गों से होते हुए -चलते हुए एक स्थान पर एकत्र होक पुराने मूल्य ,पुरानी  मान्यता , पुरानी  स्थापना ,पुराने प्रतीक ,पुरनी श्रद्धा , विश्वास ,पुरानी नींव की  नये काल खण्ड में नये परिप्रेक्ष्य में ,नई परिस्थितियों में , नये प्रसंग में मुल्यांकन करते हैं , प्रासंगिकता , उपादेयता की जांच करते-करवाते हैं।
 ऐसे क्षण धन्य  है।
आने वाली पीढियां ऐसे क्षणों को याद करेगी तथा ऐसे विचार-विमर्श-यज्ञ  में अपने विचार-अनुभव-ज्ञान -तर्क निष्कर्ष -मत-अभिमत का योगदान देने वाले का अनंत ऋण मानेगी।
इस प्रकार की विद्वत सभा जब जब आहूत होती है तो सदियाँ -काल -समाज उसे प्रणाम करता है . वैसे संकल्प को प्रणाम करता है।
पराने मूल्यों की सामयिक जाच-परख एक प्रगतिशील समाज की पहचान है।
बदलती परिस्थितियाँ मूल्यों के  तुलनात्मक महत्व , अर्थ और उपयोग में अन्तर करती रहती है।
कई बार पुरानी  स्थापनाएं स्वतः अस्पष्ट अथवा निरर्थक हो जाती है।


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