Tuesday, 2 December 2014

तम्हारी सांसों से ही आज तक तुम्हें  पढ़ते आया हूँ
गर्म सांस , ठंडी साँस , चढ़ती साँस , देखते आया हूँ
उखड़ती साँस , टूटती आश , इसे ही समझते आया हूँ
साँस , आश ,विश्वास का खेल खेलते खेलते आया हूँ। 

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