Saturday, 13 December 2014

मुझे पहले के सब कुछ से इतना मत बाँध दीजिये कि मैं उसके आलावा कुछ सोच समझ ही नहीं पाऊं मुझे पहले के सब कुछ को परखने की , जांचने की आजादी तो दिजिये .
मुझे आप को चैलेंज करने की आजादी देने में हर्ज ही कितना है 
.मुझ पर भरोसा तो किजिये. मैं सब कुछ बेवजह गिरा-पड़ा -कर बरबाद तो यूँ ही नहीं कर दूंगा . आखिर आपने सदियों से इन सब को संम्भाल कर मेरे लिए ही तो रखा है . मुझे भी आपकी मेहनत पर भरोसा है . 
आप मुझ पर भरोसा तो कीजिये .
बस इतना मान तो जाईये की आपका किया अंतिम सर्वोत्तम नहीं भी हो सकता है .इसके बाद भी बहुत कुछ है .
मुझे इतनी आजादी तो दीजिये . मैं आगे सोच सकूँ ,बढ़ सकूँ ,जाँच सकू ,कुछ आगे बढ़ संकू , नया कुछ कर सकूँ ,आपको कुछ समझा सकूँ , शायद आपसे ही बेहतर मैं हो सकूँ.मुझे अवसर तो दीजिये 

No comments:

Post a Comment