धन और धर्म व्यक्तिगत आग्रह के विषय ही बने रहे तो अच्छे। सामूहिक -सामाजिक आग्रह , प्रदर्शन , चिंतन में धन अथवा धर्म नहीं ही आवे तो सही।
इन दोनों का सार्वजनिक आग्रहसामूहिक शोषण ईर्ष्या ,कुटेव , पद-भ्रष्ट-आचरण , पथ-भ्र्ष्ट यात्रा को आगे बढ़ाता है।
इन दोनों का सार्वजनिक आग्रहसामूहिक शोषण ईर्ष्या ,कुटेव , पद-भ्रष्ट-आचरण , पथ-भ्र्ष्ट यात्रा को आगे बढ़ाता है।
No comments:
Post a Comment