Tuesday, 4 November 2014

धन और धर्म व्यक्तिगत आग्रह के विषय ही बने रहे तो अच्छे।  सामूहिक -सामाजिक आग्रह , प्रदर्शन , चिंतन में धन अथवा धर्म नहीं ही आवे तो सही।
 इन दोनों का सार्वजनिक आग्रहसामूहिक  शोषण ईर्ष्या ,कुटेव , पद-भ्रष्ट-आचरण , पथ-भ्र्ष्ट यात्रा को आगे बढ़ाता है। 

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