Tuesday, 4 November 2014

यदि  चौबीसों घंटे सातों दिन पूरे जीवन मैं पवित्र  रह ही सकता हूँ तो मुझे किसी की क्या आवश्यकता। समुद्र मंथन से मिलने वाले ऐरावत ,लक्ष्मी , अमृत आदि रत्नो को तो सभी हर समय प्राप्त ,स्वीकार  करने के लिये तैयार हैं।
पर विष का क्या होगा।
मैं किसी क्षण यदि कमजोर पड़ ही जाउँ तब  के लिये आप में से कौन नीलकंठ बन मुझे स्वीकारेगा !

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