इंज्न्क्सं दिए जाने अथवा नहीं दिए जाने की स्थिति पर विचार करते समय न्यायालय को यह अधिकार दिया जाना चाहिए कि मौलिक अधिकार के हनन ,घात ,हानि की स्थिति की व्याख्या अपूर्णीय क्षति के रूप में कर सके .
इस कार्य के लिये प्रारंभिक स्तर के न्यायालयों पर समाज को विश्वास करना ही होगा..
किसी भी व्यक्ति ,संस्था ,निकाय , सरकार ,अधिकारी के द्वारा मौलिक अधिकारों पर आघात की स्थिति की रक्षा को निम्नतम न्यायालायीय व्यवस्था के द्वारा संज्ञेय बनाया जाना चाहिए तथा उसी स्तर पर पुनः जाँच ,यदि आवश्यक हो कि व्यव्स्था की जानी चाहिए .प्रत्येक विवाद को अनंत मुक़दमे बाजी के लिये मुक्त नहीं छोड़ा जाना चाहिए.
मुकदमे योग्य विवादों की जाँच हर स्तर करने की व्यवस्था होनी चाहिए. अपने साधनों के बलपर किसी को भी राष्ट्रिय न्यायिक संसाधनों के अनुचित दोहन ,उपभोग अथवा जमाखोरी की अनुमति नहीं दी जानी चाहिये . इसी प्रकार सभी व्यक्तियों की पहुँच राष्ट्र के न्यायिक संसाधनों तक सुनिश्चित की जानी चाहिए . न्यायिक संसाधनों के अनुचित अथवा गैर अनुपातिक उपभोग पर कड़ी नजर रखी जानी चाहिए.
राष्ट्र के न्यायिक संसाधन भी राष्ट्रिय संपत्ति हैं . उन दुरूपयोग करना अपराध घोषित किया जाना चाहिए.राष्ट्रिय न्यायिक समय की बर्बादी रोकी जानी चहिये.
इस कार्य के लिये प्रारंभिक स्तर के न्यायालयों पर समाज को विश्वास करना ही होगा..
किसी भी व्यक्ति ,संस्था ,निकाय , सरकार ,अधिकारी के द्वारा मौलिक अधिकारों पर आघात की स्थिति की रक्षा को निम्नतम न्यायालायीय व्यवस्था के द्वारा संज्ञेय बनाया जाना चाहिए तथा उसी स्तर पर पुनः जाँच ,यदि आवश्यक हो कि व्यव्स्था की जानी चाहिए .प्रत्येक विवाद को अनंत मुक़दमे बाजी के लिये मुक्त नहीं छोड़ा जाना चाहिए.
मुकदमे योग्य विवादों की जाँच हर स्तर करने की व्यवस्था होनी चाहिए. अपने साधनों के बलपर किसी को भी राष्ट्रिय न्यायिक संसाधनों के अनुचित दोहन ,उपभोग अथवा जमाखोरी की अनुमति नहीं दी जानी चाहिये . इसी प्रकार सभी व्यक्तियों की पहुँच राष्ट्र के न्यायिक संसाधनों तक सुनिश्चित की जानी चाहिए . न्यायिक संसाधनों के अनुचित अथवा गैर अनुपातिक उपभोग पर कड़ी नजर रखी जानी चाहिए.
राष्ट्र के न्यायिक संसाधन भी राष्ट्रिय संपत्ति हैं . उन दुरूपयोग करना अपराध घोषित किया जाना चाहिए.राष्ट्रिय न्यायिक समय की बर्बादी रोकी जानी चहिये.
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