Saturday, 15 March 2014

न बरसने से तो अच्छा है बिन मौसम ही बरसो ।बरसने से प्यासी धरती को पानी मिलता है ।
पुण्यात्माओं के बरसने से , बरसते रहने से अनंत जीवों की प्यास बुझती है ,अनंत शांति मिलती है ।
पर बरसना सहज नहीं है ।
बरसने के पहले जल संग्रह करने की एक लंबी प्रक्रिया है । एक एक बूंद को सूरज के पूरे पूरे प्रकाश में सबके सामने ,समुद्र से चुरा लेना क्या कोई सहज कार्य है । समुद्र का जल नमकीन ! सीधे यदि वही जल बरसा दिया जाये तो धरती और सारे धरती के जीव त्राहि माम करने लगेंगे । जिन बादलों का आज स्वागत हो रहा है उनका तिरस्कार होने लगेगा ।
धरती और धरतीवासियों को तो शुद्ध परिष्कृत निर्मल जल ही चाहिये ।कहाँ से आएगा यह जल ?
इसकी चिंता तो केवल बादल करते हैं । यह जल कहाँ से आवेगा यह तो बादल जाने । कैसे पूरी धरती के हर प्राणी तक पहुँचेगा यह भी बादल की चिंता । प्यासा तो प्यास लिये पड़ा है । जिसे प्यास बुझानी हो ,जल लाओ , जल पिलाओ , प्यास बुझाओ ।  

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