Saturday, 15 March 2014

दुनियादारी में खुशामद एक कला है. मैं लगभग इसमें पिछड़ ही जाता हूँ .अपने से बड़ों को केवल अपने काम से प्रभावित करना एक बात हैं .इसमें बड़ा परिश्रम है .
कम से कम बच्चों को तो आप आँवला खिला कर प्रभावित कर ही नहीं सकते , उन्हें तो बेर ,इमली , कच्चा आम  ही चाहिये .
मैं यह सब जानते हुए भी बच्चों के साथ ज्वाइन नहीं कर पाता हूँ . यदि मिनट दो मिनट ,घंटा दो घंटा ,कभी कभार बच्चों के बीच इन रोचक और खुशामदी बातों का ड्रामा  मैं करने भी लगता हूँ तो बच्चे तक मुझे थोड़ी ही देर में पहचान जाते हैं  की यह व्यक्तितो वस्तुतः पढ़ा रहा है या सिखा रहा है ,हमसे न तो खेल रहा है न ही हमें खेलने दे रहा है .
अपनों से बड़ों के बीच जब मैं बैठता हूँ तो मैं शुरूआती दौर में बड़ों को बड़ा ही अच्चा लगने लगता हूँ .
पर धीरे-धीरेउन्हें यह एहसास हो ही जाता है की यह व्यक्ति हमारे कहे अनुसार डराने धमकाने पर भी गलत काम नहीं करेगा .
मेरे इस व्यवहार के कारण आज की  चाटुकारिता भरी दुनियामें कई बार अजीब सा लगता है और कई बार यह चारों ओर व्याप्त चाटुकारिता का वातावरण घुटन तथा तनाव का कारण हो जाता है .चाटुकारिता के आजू बाजू भ्रष्टाचार पनपता है .भाई -भतीजा -वाद पनपता है . न जाने मुझे क्यों इन तीनों ही चीजों से एक विक्षेप है .
    

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